गुरुवार, 30 सितंबर 2010

मत चुके चौहान (ज़ारी )

चार बांस ,चौबीस गज ,अंगुल अष्ट प्रमाण
ता -ऊपर ,सुलतान है ,मत चुके चौहान ।
सन्दर्भ मोह्मम्मद गौरी के दरबार में कविचंदबरदाई द्वारा उठाए गये इस प्रसंग का अयोध्या के सन्दर्भ में भी बड़ा मौजूं है .गौरी ने छलबल से पृथ्वी राज चौहान को ना सिर्फ बंदी बनाया उनकी आँखें भी निकलवा दीं .शब्द बाण चलाने में माहिर थे चौहान .चंदबरदाई ने गौरी को एक राजा के दूसरे राजा के प्रति गरिमा पूर्ण व्यवहार की याद दिलाते हुए यह भी बतलाया :महाराजा शब्द बाण चलातें हैं .गौरी तो अपने गुरूर में मदमस्त था कहने लगा ऐसा था तो युद्ध में क्यों मुझसे हार गये .मैं नहीं मानता जो तुम कह रहे हो .चंद बरदाई ने कहा-आज़माइश करके देख लो .अपने गुरूर में गौरी बहुत ऊपरमचान पर जाकर बैठ गया ,गुरूर में उसने कहा -ओ पृथ्वी- राज दिखा करतब .और चौहान साहिब ने बाण चला दिया .गौरी हताहत हुआ .चंदबरदाई ने चौहान को उक्त दोहा सुनाकर गौरी की सटीक स्थिति का बोध करा ही दिया था शेष काम बाण विद्या ने कर दिखाया ।
मुस्लिमों के सामने भी एक मौक़ा है .चूक गये तो हाथ मलना पड़ेगा .सवाल उनकी अपनी मर्दन हो चुकी छवि से जुडा है जिसे अलगाव वादी घर बाहर के लोग हवा देते रहें हैं .९/११ और २६ /७ के बाद अब यह मौक़ा आया है तो चूकने के लिए नहीं अपनी छवि निखारने के लिए ही अल्लाह ताला ने मुहैया करवाया होगा ।
सबसे बड़ा फायदा इस कदम से देश का होगा यदि सुन्नी वक्फ बोर्ड एक तिहाई ज़मीन पर अपनी मिलकियत स्वेच्छा से छोड़ मंदिर निर्माण को आगे आये तो मुलायम -रामविलास पासवान -लालू की इतर सेक्युलर पुत्रों की राजनीति की हवा भी निकल जायेगी .इसी फूट का यह ख़ा रहें हैं .
फिर उदार हिन्दू मन मुस्लिम भाई जहां चाहेंगें (अयोध्या से बाहर कहीं भी ,अयोध्या में पहले ही कई मस्जिद हैं जिनपर कभी कोई विवाद नहीं रहा है ).बनवा देंगें .आखिर भारत में पहली मस्जिद कालीकट के एक हिन्दू राजा ने ही बनवाई थी .वैसे भी मस्जिद राम लाला की तरह किसी का जन्म स्थान नहीं रही है -जहां नमाज़ अता की जाती है वह जगह पाकीज़ा हो जाती है ,मस्जिद बन जाती है .मक्का में पहली मस्जिद वहां बनी थी जहां मोहम्मद साहिब का ऊँट बैठ गया था .

मत चुके चौहान

इस मोड़ पर कुछ बात सेहत से हठकर मुल्क की भावी सेहत के बारे में हो जाए ।
अयोध्या के सन्दर्भ में उच्च न्यायालय का जो फैसला आया है उसे लेकर हमारे मुस्लिम भाई एक सदा- शयता दिखलायें .वक्फ बोर्ड एक तिहाई ज़मीन पर अपना हिसा स्वेच्छा से छोड़ मंदिर निर्माण में भागीदार की भूमिका में वापस आयें .साथ ही यह भी बतलाएं "हिन्दुस्तान में अयोध्या "को छोड़ कहाँ शानदार मस्जिद बनाई जाए (अयोध्या में पहले ही कितनी मस्जिदें मौजूद हैं ).
इतिहास-इक पल छिन ने वह मौक़ा मुहैया करवाया है जब मुस्लिम भाई आलमी स्तर पर कुछ पड़ोसी मुल्कों द्वारा जतन से बनाई उनकी गलत छवि को बदल सकतें हैं .९/११ तथा २६ /७ के सिंड्रोम से आने का यह मौक़ा है और ऐसे अवसर बारहा नहीं आते ।
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुएँ हैं ।
इमाम बुखारी साहिब से भी हम यही दरखास्त करते हैं ,मौलाना वहीदुद्दीन का इस्लामवादी रूख अपनाएँ .
चंद- बरदाई मोहम्मद गौर के दरबार में पहुँच कर पृथ्वी -राज चौहान को सही वक्त पर चेताया था .कहते हुए :
चार बांस चौबीस गज ,अंगुल अष्ट प्रमाण .ता -ऊपर सुलतान है ,मत चुके चौहान ।
शब्द बाड़

(गत पोस्ट से आगे अपनी ही गर्मी से काम करेंगें कम्यूटर्स

(गत पोस्ट से आगे .....)
क्या है तापविद्युत विज्ञान का "सीबेक इफेक्ट "?
दी प्रोडक्सन ऑफ़ एन इलेक्ट्रिक करेंट इन ए सर्किट कंटेनिंग जन्क्संस बिटवीन डिफरेंट मेटल्स ऑर सेमी -कन्दक्तार्स केपट अट डिफरेंट टेम्प -रिचर्स .,इज काल्ड सीबेक इफेक्ट .मान लीजिये दो धातु आयरन और कोपर के दो पतले लम्बे तारों को सिरों पर जोड़ कर एक जंक्सन को लगातार ठंडा रखा जाता है (जीरो सेल्सियस पर )तथा दूसरे को लगातार गर्म किया जाता है ,तो दोनों सिरों पर पैदा तापान्तर एक विद्युत् दाबांतर पैदा करता है .यही पोटेंशियल डिफ़रेंस जंक्सन के बीच विद्युत् धारा (करेंट )भेजता है .जो गर्म सिरे पर कोपर से आयरन की तरफ चलता है प्रवाहित होता है .यही सीबेक प्रभावहै जिसका पता साइंसदान सीबेक ने लगाया था .
स्पिन -सीबेक इफेक्ट क्या है ?
दी कन्वर्शन ऑफ़ हीट इनटू स्पिन पोलेराई -जेशन एज ओब्ज़र्व्द इन ए पीस ऑफ़ मेटल्स इज काल्ड स्पिन -सीबेक इफेक्ट .दी इफेक्ट दो इज बींग वेरिफाइड इन गेलियम मेंग्नीज़ आर्सेनाइड बाई रिसर्चर्स अट तोहोकू यूनिवर्सिटी बट इज दी लिस्ट अंडर- स्टुड.

अपनी ही गर्मी के पुनर -चक्रण से चलेंगें कम्प्यूटर्स

कम्प्यूटर्स टू रन ओं हीट,रादर दें इलेक्ट्री -सिटी (साइंस -टेक ,मुंबई मिरर ,सितम्बर २९ ,२०१० ,पृष्ठ २५ )।
एक नए सेमी -कंडक्टर (अर्द्ध -चालक पदार्थ )के स्तेमाल से जल्दी कंप्यूटर अपने द्वारा पैदा गर्मी के आंशिक पुनर -चक्रण से ही काम करेंगें .ओहायो स्टेट विश्वविद्यालय के रिसर्चरों ने एक ऐसे प्रभाव का पता लगाया है जो ताप को नर्तन (स्पिन ,एक क्वांटम यांत्रिकीय फिनोमिना )में तब्दील करदेता है .ऐसा एक अर्द्ध -चालक पदार्थ गेलियम मेंग्नीज़ आर्से -नाइड में होता है .
विकसित हो जाने के बाद इस प्रभाव के ऐसे समेकित परिपथ (इंटी -ग्रेटिदसर्किट्स )तैयार किये जा सकेंगें जो ताप से अपना काम अंजाम देंगें ,बिजली (विद्युत् ऊर्जा )से नहीं।

वास्तव में यह शोध दो अभिनव प्रोद्योगिकियों का समन्वय प्रस्तुत करती है :थर्मो -इलेक्त्रिसिती और स्पिन -टरो-निक्स को एक करदेती है .यही वह प्राविधियाँ होंगीं जो ताप को बिजली में तब्दील कर देंगीं ।
स्पिन -टरो -निक्स अभिनव कम्प्यूटर्स का आधार(बुनियाद ) बनने जा रही है ,क्योंकि इस प्रोद्योगिकी में स्वयं कोई गर्मी (ताप ऊर्जा ,या ऊष्मा )नहीं पैदा होगी ।
स्पिन -टरो -निक्स के ताप -गति -विज्ञान (थर्मो -डाय -निमिक्स )पर नै शोध रौशनी डालती है पैमाइश करती है ,माप जोख भी करती है.नेचर विज्ञान साप्ताहिक पत्रिका ने यह शोध प्रकाशित किया है ।
थर्मो -स्पिन -टरो -निक्स के एक संभव उपयोग में इस डिवाइस को एक परम्परागत माइक्रो -प्रोसेसर के ऊपर समायोजित कर दिया जाएगा .वेस्ट हीट को यह प्राविधि साईफन करके बाहर अतिरिक्त मेमोरी या कम्प्यूटेशन को अंजाम देगी ।
बेशक इस सब के बावजूद स्पिन -सी - बेक -इफेक्ट एक रहस्य (अबूझ )ही बना हुआ है .बेशक ताप -विद्युत् का सीबेक प्रभाव +१० के विद्यार्थी भी जानतें हैं ।
सीबेक इफेक्ट ?
दी प्रोडक्शन ऑफ़ एन इलेक्ट्रिक करेंट इन ए सर्किट कंटेनिंग जन्क्संस बिटवीन डिफरेंट मेटल्स और सेमी -कण -डक -टार्स

इन -वीट्रो -फर्टी -लाइ -जेशन भी बन सकता है लिंग -वैषम्य की वजह ?

आई वी ऍफ़ कैन आल्टर जेंडर बेलेंस ?सम फर्टी -लाइ -जेशन मेथड्स रिज़ल्ट -इड इन मोर मेल बेबीज़ ,फाइंड्स स्टडी .मोर बोइज सीम्ड टू रिज़ल्ट फ्रॉम एम्ब -रियोज देट वर ट्रांस -फर्ड ४ डेज़ आफ्टर फर्टी -लाइ -जेशन (५४.१%)कम्पे -यार्ड टू २-३ डेज़ आफ्टर फर्टी -लाइ -जेशन(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर ३० ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ी -लैंड में संपन्न एक खासे बड़े अध्ययन से पता चला है अस्सितिद फर्टी -लाइ -जेशन की कुछ ख़ास पद्धति भी लड़कियों के बरक्स ज्यादा लडके पैदा करने की वजह बन सकती है और इस प्रकार अनजाने ही एक लिंग - वैषम्य, लडका -लडकी, अनुपात को जो पहले ही भारत और चीन जैसे मुल्कों में विषम बना हुआ है और भी विषमतर हो सकता है ।
न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ वोमेन्स एंड चिल्ड -रेन्स हेल्थ के रिसर्चरों ने अध्ययन के को -ऑथर जीशान डें के नेत्रित्व में ऐसे १३,१६५ सेम्पिल्स का अध्ययन किया है जिन्होंने इन -वीट्रो -फर्टी -लाइ -जेशन का सहारा लिया .उन महिलाओं ने ५३ %लडकों को जन्म दिया जिन्हें स्टेंडर्ड आई वी ऍफ़ दिया गया .जबकि इंट्रा -साइटों -प्लाज्मिक -स्पर्म इंजेक्शन लेने वाली महिलाओं में से ५० फीसद नेही लडकों को जन्म दिया ।
इंट्रा -साइटों -प्लाज्मिक -स्पर्म इंजेक्शन सीधे सीधे ह्यूमेन एग में उन मामलों में दिया जाता है जब स्पर्म की "मोटि -लिटी"ना के बराबर रहती है ।
व्हेन ए स्पर्म सेल इज नोट बींग एबिल टू मूव स्पोन -टेनिअसली विद आउट एक्सटर्नल एड इट इज काल्ड मोटाइल।
स्टेंडर्ड आई वी ऍफ़ में स्पर्म और ह्यूमेन एग को साथ साथ इन्क्युबेट किया जाताहै एक कल्चर माद्ध्यम में. १८ घंटो के अन्दर अमूमन एग फर्टी -लाइज्द भी हो जाता है .अब यदि इसे चौथे दिन गर्भाशय में इम्प्लांट किया जाता है तब लडके ज्यादा पैदा होते देखे गए (५४.१%)जबकि २-३ दिन बात ट्रांस -प्लांट करने पर ४९.९ फीसद ही लडके पैदा होते देखे गए ।
कालान्तर में इससे खासा अंतर पड़ गया है .बेशक ऐसा अनजाने में ही हुआ है लेकिन केस स्टडी पर गौर किया जाना चाहिए .

दफ्तरी कामकाज का एक साल जाया कारदेतें हैं धूम्र पान अंतराल में (ब्रेक में ) धूम्रपानी

स्मोकर्स वेस्ट ए ईयर ऑफ़ दे -यर लाइव्ज़ ऑन "फैग -ब्रेक्स ".(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर ,३० ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
झूठ कहाँ बोलतें हैं हमारे "बोस "?एक अध्ययन के मुताबिक़ स्मोकर्स अपने नॉन -स्मोकर्स सह -कर्मियों के बरक्स एक सालकी कार्य अवधि अपने पूरे दफ्तरी-जीवन काल में सिर्फ स्मोकिंग ब्रेक्स में ही गवां देतें हैं ।
यु के आधारित एक मार्किट रिसर्च कम्पनी " वन पोल .कोम " ने अपने एक अध्ययन में बतलाया है एक धूम्र -पानी दफ्तर के काम के दौरान दिन भर में औसतन १५ -१५ मिनिट के चार ब्रेक लेता है .आकलन से पता चलता है पूरे जीवन काल में यह अवधि ४४५ दिन की हो जाती है .(मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया ,दफ्तर के घंटे धुयें में उडाता चला गया .......).

पादप प्रजातियों का पांचवां हिस्सा नष्ट होने की कगार पर

एक्स -टिंक -सन थ्रेट टू वन फिफ्थ ऑफ़ प्लांट्स :(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर ३० ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर की पादप प्रजातियों का पांचवें से भी ज्यादा हिस्सा नष्ट होने की कगार पर आ पहुंचा है .पृथ्वी पर फिलवक्त मौजूद जीव -रूपों के लिए (मानव कुल )तो जिसमे शामिल है ही इसके गंभीर असर होंगें .इस अध्ययनसे जिसकी आशंका थी वही पुष्ट हुआहै ,पादप कुल खतरे में है और इसकी वजह मनुष्यों द्वारा कुदरती आवासों को रोंदना नष्ट करना बना है .यह कहना है स्टेफेन होप्पेर का .आप रोयल बोटेनिक गार्डंस ,लन्दन के निदेशक हैं .

बुधवार, 29 सितंबर 2010

आकाश में तैनात होंगें चौकीदार पुलिसिया रोबोट्स

रोबोट ए-यर क्राफ्ट एज ए-यर बोर्न कोप्स ?(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २९ ,२०१० ,पृष्ठ २३ )।
मानव रहित विमानों का आम तौर पर प्रति -रक्षा सेवाओं में आतंकी ठिकानों की निगरानी ,दुश्मनके थ्रेत्निंग विमानों की निगहबानी के लिए किया जाता रहा है .खुफिया कामों के लिए तो इनका स्तेमाल होता ही आया है इस अधुनातन दौर में अब इससे से भी एक कदम आगे निकल यह घरलू कामों की भी निगरानी करेंगे ,कोप्स की भूमिका में आयेंगें .अन्तरिक्ष से निगाह रखेंगें रन -नीतिक ठिकानों पर .बुनियाद परस्त जो कुछ ना करदेंकरादें सो कम .फिर चाहे ११/९ की बगल से मस्जिद बनाओ या कुछ और ,क्या फर्क पड़ता है ?
ए -यर बोर्न ट्रेफिक कोप्स (मुआफ करना उडन शील रोबोट्स ) अब सीमाओं की चौकसी करेंगें .दो शहरों के बीच माल की आवाजाही का ज़रिया भी बनेंगें ।
आइये देखते हैं क्या कहतें हैं ,पीटर सिंगेर नै किताब "वायर्ड फॉर वार "में .उन्हीं के शब्दों में "इन दी नेक्स्ट डिकैद दे -यर विल बी सम काइंड ऑफ़ पे -यरिंग ऑफ़ ह्युमेंस एंड अन -मेनिड(मानव रहित प्रणालियों )सिस्टम्स .

ज्यादा ध्यान भंग करता है कनसुई लेना

रुक कर किसी की चोरी छिपे बात सुनना ज्यादा ध्यान भंग करता है खासकर बातचीत जब दूरभाष (दूरध्वनी ) पर चल रही हो और लेदेकर आप एक पक्ष की बात ही वह भी आधी अधूरी ही सुन पारहें हैं ,खड़े खड़े चोरी चोरी कनसुई ले रहें हैं .
कोर्नेल विश्वविद्यालय की साइंसदान लौरें एम्बेरसों (पी एच डी छात्रा )कहतीं हैं अकसर यूनिवर्सिटी आते वक्त जब मेरे कानों में सेल फोन पर की जाने वालीकिसी की आधी अधूरी बात पडती थी (हाल्फ -लोग यानी हाल्फ डाय -लाग )कहना पसंद करतीं हैं एम्बेरसों इसे .)मैं पढ़ नहं पाती थी जबकि पढना मेरा बेहद का शौक है .ऐसा लगता है ज्यादा गड़बड़ी पैदा करती है एक पक्षीय सुनी हुई अधूरी बात ,कान खड़े हो जातें हैं दिमाग चौकन्ना (पढ़ लो बेटा क्या पढोगे ऐसे में )।
इसकी आज़माइश के लिए आपने २४ छात्रों को चुना .इन्हें ऐसा काम करने के लिए दिया गया जो पूरा ध्यान लगाना माँगता है ,विशेष तवज्जो की दरकार रहती है जिस टास्क को पूरा करने के लिए ,वही इनपर आजमाई गई .पृष्ठ भूमि में बारी बारी से तरह तरह की आवाजें (नोइज़ ),रिकोर्डिद बातचीत ,आधी अधूरी एक पक्षीय बात (हाल्फ -लाग ) ,एक हीव्यक्ति का लम्बा संभाषण,एकालाप ,स्वगत भाषण ,स्वगत कथन (मोनोलोग ),चलता रहा .बीच बीच में मौन भी रचा गया .कोई विक्षोभ (डिस -तर्बेंस )नहीं .अब देखिये क्या होता है ?
मोनोलोग और दो -पक्षीय बातचीत से स्वयंसेवी ज्यादा डिस -तर्ब्द ,नहीं हुए उतना ध्यान भग नहीं हुआ इनका जितना हाल्फ -लाग ने कर दिखाया .हाल्फ लाग का विघ्न रूप में ज्यादा प्रभाव पड़ा .ज्यादा गलतियां हुईं इस दरमियान काम के निपटारे में ।
दरअसल इसकी वजह यह है बातचीत का कयास लगाया जा सकता है,एकालाप तो स्टष्ट ही होता है , एक पक्षीय अधूरे सम्वाद का नहीं इसीलिए दिमाग पर ज्यादा जोर पड़ता है ,दिमागी प्रतिक्रया बे -काबू हो जाती है नतीज़न ध्यान एक दम से भंग हो जाता है .

मीग्रैन की तल्लीफ से रहत के लिए अब एस्पिरिन का असरदार टीका है

एस्पिरिन जेब टू बीट मीग्रैन मिज़री(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २९ ,२०१० ,पृष्ठ २३ )।
केलिफोर्निया विश्विद्यालय,सन- फ्रांसिस्को कैम्पस के रिसर्चरों ने मीग्रैन की बेहद की तकलीफ से राहत दिलवाने वाला एक बेहद असरकारी (पावरफुल )टीका एस्पिरिन की एक ग्रेम मात्रा लेकर तरल के रूप मेतैयार कर लिया है .जोड़ों या सिर दर्द से राहत के लिए ली जाने वाली दवा की डोज़ से यह दस गुना बड़ी डोज़ है .लेकिन यह एक सस्ता और प्रभावशालीउपाय और समाधान समझा जा रहा है आधी शीशी के इस पूरे सिर दर्द से राहत दिलवाने वाला जो एक बैचैन कर देने वाला न्यूरो -लोजिकल दिस -ऑर्डर है .तथा बेहद खर्चीला इलाज़ माँगता है .बस इसमें एस्पिरिन की बड़ी खुराक एक तरल के रूप में ली गई है .

एक सेशन री -कनेक्तिव थियरेपी का पर्ल के संग (ज़ारी )

मरीज़ को हाथों की ऊँगलियाँ खुली रखने की हिदायत के साथ आराम से लिटा दिया जाता है या फिर आराम से बैठा रहने के लिए भी कहा जाता है .अब पहले स्वयं हीलर" हीलिंग फ्रीक्युवेंसीज़" के एक पूरे स्पेक्ट्रम(ए बैंड ऑफ़ फ्रीक्युवेंसीज़ ) से पहले खुद जुड़ता है .ऊंगलियों से किया जाता है यह कनेक्ट होने का काम .इस विद्या से नावाकिफ व्यक्ति को लग सकता है हीलर पानी में से बामुश्किल गुज़र रहा है ।हाथ पैर मार रहा है .
अब वह सेहत स्वास्थ्य -प्रदातायानी हीलर , मरीज़ के आसपास घूमता है सिर से पाँव तक बारहा .ऊंगलियों को नचाता हुआ .लगातार मरीज़ से अपना फासला कम ज्यादा रखता हुआ .लगता है वह अपने हाथों के स्पंदनों से खेल रहा है .इसका तुरंत और तात्कालिक प्रभाव मरीज़ पर यह पड़ता है ,पलकें बेतहाशा झपकने खुलने लगती हैं ,फड़ फड़ा -ती हैंजल्दी जल्दी ,हाथ पैरों की ऊंगलियों में सनसनाहट,झनझनाहट,झुर -झुरी(ट्वीच -इंग ) होने लगती है ,पुतलियाँ तेज़ी से घूमने लगती हैं गर्दनके निचले आधार -भूत हिस्से में जुम्बिश,फड़- कन होने लगती है .इसी अवस्था में मरीज़ को प्रकाश और रंगों का मेला सा लगता दिखलाई देता है .एक विशेष प्रकार की गर्माहट उनके बदन में दौड़ने लगती है हाथ और दिमाग में एक अलग और अजीब किस्म का संवेदन और एहसास होने लगता है .हो सकता है तुरत प्रभाव के साथ कभी कभार ऐसा ना भी हो .लेकिन (ज़ारी )
अकसर यह होता है ।
और इसी दरमियान अप्रत्याशित तौर पर मरीजों को ऐसे रोगों से भी मुक्त होते देखा गया है जो अंतिम चरण तक पहुँच लाइलाज हो जातें हैं.चाहे फिर वह आर्थ -राय -टिस हो या पुराना जोड़ों का दर्द हो या देर तक बने रहने वाला कोई और दर्द ।सिर दर्द -आधी शीशी का पूरा यानी मी -ग्रीन .
होता यह है हमारा शरीर कुछ नै आवृत्तियों के साथ समस्वर हो जाता है स्पंदन करने लगता है ,बस एक अन्तर हम महसूस करने लगतें हैं ऊर्जा से भरने लगतें हैं जो यह तमाम आवृत्तियाँ समेटे हुएँ हैं .सारा खेल फोटों यानी क्वांटम ऑफ़ एनर्जी "एच न्यू "का ही तो है .यहाँ एच प्लांक्स कोंस -टेंट है ,न्यू फ्रीक्युवेंसी है ,"एच. न्यू "ऊर्जा का एक पैकिट है .बस हम खुद स्पन्दन हो जातें हैं .दी वाई -ब्रेसंस रजिस्टर एंड बिकम पार्ट ऑफ़ अस .हम सृष्टि की अपार ऊर्जा से असीम से ,जुड़ जातें हैं.हीलिंग बस एक संतुलन है जो कायम हो जाता इस विध .कैसे यह सब होता है ,पर्ल भी नहीं जानतें हैं .बस इस कुदरती दौलत (ऊर्जा )के धनीहैं पर्ल .पर्ल मात्र एक ज़रिया बनतें हैं इस संतुलन की प्राप्ति में .एक पाथ -वे मुहैया करवातें हैं रोगी -काया को .नीरोग कैसे हो जाती है काया ,तन और मन पर्ल भी नहीं जानते ।
हीलर इस प्रक्रिया में खुद भी लाभान्वित होता है .हीलिंग फ्रीक्युव्नेसीज़ उसे भी बराबर दुरुस्त रखने के लिए ज़रूरी ऊर्जा संतुलन बनाए रहने में मदद गार सिद्ध होतीं हैं .(समाप्त )

री -कनेक्तिव हीलिंग (ज़ारी )

(गत पोस्ट से आगे ....री -कनेक्तिव हीलिंग क्या है ?)
री -कनेक्तिव हीलिंग में सारा खेल तमाशा हीलिंग फ्रीक्युवेंसीज़(सेहत प्रदायक आवृत्तियाँ ) और एनर्जीज़(ऊर्जाओं के जोड़ ) का है .पदार्थ और चेतना का समन्वित रूप हमारा शरीर तमाम तरह की आवृत्तियों से लगातार इन्टेरेक्त करता रहता है .हमारा शरीर भी तो पदार्थ -ऊर्जा का एक दृश्य रूप ही तो है .(पदार्थ यानी मैटर और एनर्जी यानी ऊर्जा एक ही भौतिक राशि के दो रूप हैं .कभी यह पदार्थ -ऊर्जा एक बिन्दु पर घनीभूत होने पर पदार्थ के रूप में दिखलाई देती है तो कभी विरलिकृत हो , ऊर्जा के रूप में अदृशय बनी रहती है .
री -कनेक्तिव हीलिंग हमारे खुद के अस्तित्व को पहले अपनी पूरी संभावनाओं के साथ स्वयं से और फिर अखिल विश्व में मौजूद ,समूची सृष्टि के स्पंदनों (वाइब्स )से जोड़ना है .हर चीज़ में स्पंदन ,वाइब्रेशन मौजूद है जो उसका नैजिक है ।
री -कनेक्तिव हीलिंग कनेक्ट पीपल कम्प्लीटली टू दी यूनिवर्स एंड ड्रो अपोन इट्स वाइब्रेसंस.यहाँ आकर री -कनेक्तिव हीलिंग रेकी का भी अतिक्रमण कर उससे आगे निकल जाती है .यहाँ जुड़ने के लिए एक पूरी रेंज है फ्रीक्युवेंसीज़ की (ए बैंड -यहाँ पूराउपलब्ध है फ्रीक्युवेंसीज़का )।
यहाँ पूरा का पूरा एक बैंड उपलब्ध है फ्रीक्युवेंसीज़ का जानकारी हासिल करने के लिए .रिसर्चरों के अनुसार हम परस्पर लगातार विद्युत् चुम्बकीय प्रकाश और ऊर्जा बैंड पर एक दूसरे से, संकेतों के आदान प्रदान के ज़रिये जुड़े हुएँ हैं .हमारा शरीर एक बेहतरीन ट्रांसमीटर भी है रीसीवर भी .ऊर्जा चिकित्सा के तहत वी यूज़ ए बैंड ऑफ़ ऑफ़ लाईट एनर्जी .
ज़रुरत इस ऊर्जा तक पहुँच बना कर इसे ग्रहण करने की सीखने की है .कोई भी इस हुनर को सीख सकता है .हीलर और हीली के बीच भी परस्पर इसी एनर्जी फ्रीक्युवेंसी पर ऊर्जा का विनिमय होता है .ज़ाहिर है हीलर के पास एक रचनात्मक ऊर्जा है ,रचनात्मक शक्ति है ,स्वास्थ्य प्रदायक कुदरती ऊर्जा है ,जिसे वह आप तक अंतरित कर रहा है .ज़रुरत आपके विश्वाश और आश्था की है .आपके अपने ट्रांसमीटर और रीसीवर के दुरुस्त होने रहने की है .दाता तैयार है लेनहार भी तो कोई हो .हीलर तो बस एक माध्यम भर है एक चैनल एक रास्ता प्रदान कर रहा है ऊर्जा के प्रवाह के लिए .एक पाथ -वे से वाकिफ करवा रहा है .बाकी सब आपका है .तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा .

क्या है री -कनेक्टिव हीलिंग ?

लाइटनेस ऑफ़ बींग .री -कनेक्टिव हीलिंग चेनल्सएनर्जी एंड लाईट टू हील .लीडिंग प्रेक्टिशनर डॉ .एरिक पर्ल इलाबोरेट्स (मुंबई मिरर ,सितम्बर २८ ,२०१० ,पृष्ठ २२ )।
तमाम तरह की वैकल्पिक चिकित्सा आजकल उस ऊर्जा का बाराहा ज़िक्र करतीं हैं जो हमारे गिर्द रहती है .जिसे कभी "ची "तो कभी "औरा "भी कहा जाता है .इसी ऊर्जा क्षेत्र को संतुलित बनाए रखने की कला-कौशल और अभ्यास है एनर्जी हीलिंग ,जो व्यक्ति मानस (मानसिक और भौतिक जगत ,मानसिक और भौतिक अस्तित्व )दोनों को असरग्रस्त करती है .रेकी ,प्राणिक हीलिंग,एक्यु -पंक्चर की मानिंद ही री -कनेक्टिव हीलिंग इनदिनों चर्चा में है ।
री -कनेक्टिव हीलिंग के तहत लाईट (प्रकाश ऊर्जा,विकिरण ऊर्जा ) ,एनर्जी तथा सूचना (जानकारी ,इन्फार्मेशन ) तीनो का स्तेमाल व्यक्ति के दैहिक ,मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्यमें सकारात्मक बदलाव , दुरुस्ती के लिए किया जाता है .
इसके मुख्य प्रस्तावक हैं डॉ .पर्ल एरिक (एक अमरीकी, पूर्व चाइरो -प्रेक्टिक प्रेक्टिशनर ).ए चाइरो -प्रेक्टिशनर ट्रीट्स दिजीज़िज़ बाई मनिप्युलेशन ,मैनली ऑफ़ दी वर्तिब्रे ऑफ़ दी बेकबोन.चाइरो -प्रेक्टिक इस बेस्ड ऑन दी थिअरी देट नियरली आल डिस -ऑर्डर्स कैन बी ट्रेस्द टू दी इनकरेक्ट एलाइन्मेन्त ऑफ़ बोनस ,विद कन्ज़िक्युवेंत मालफंक्शनिंग ऑफ़ नर्व्ज़ एंड मसल थ्रू -आउट दी बॉडी .
यह एक ऐसा अनुशासन है जो मानता समझता है ,मस्क्युलो -स्केलिटल-सिस्टम खासकरहमारी स्पाइन (रीढ़ )के तामाम विकार हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य को असरग्रस्त करतें हैं .
पर्ल कहतें हैं मेरे मरीजों ने मुझे बतलाया है ,उन्हें प्रकाश (दिव्य पुरुषों का प्रभामंडल ,दोस्तों की मनोहारी छवियाँ ),तरह तरह के रंग और कभी कभार वह तमाम लोग भी साफ़ दिखलाई देतें हैं री -कनेक्टिव हीलिंग - सेशन के दरमियान जो चिकित्सा कक्ष में वास्तव में मौजूद होतें ही नहीं है .
कुछ ने जादुई तौर पर लाइलाज रोगों की जद से बाहर आने का इशारा किया वह भी देखते ही देखते ,उस दरमियान जब पर्ल उनके आस पास सिर्फ अपने हाथों को गति स्पंदन दे रहे थे ,इसहाथों की हरारत के दौरान पर्ल उनका स्पर्श भी नहीं कर रहे थे .इनमे एन -जाइना से लेकर मल्तिपिल स्केलेरोसिस तथा कैंसर के अंतिम चरण से जूझते मरीज़ मरीजाएं भी रहीं हैं .

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

वीडियोगेम्स दिमाग को कुशाग्र बनातें हैं (ज़ारी )

दी फ़ाइन्दिन्ग्स देट यूजिंग विसुओमोटर स्किल्स (विज्युओ -मोटर स्किल्स ) कैन री -ओर्गेनाइज़ हाव दी ब्रेन वर्क्स ऑफर्स होप फॉर फ्यूचर रिसर्च इनटू दी प्रोब्लम्स एक्स -पीरियेंस्द बाई एल- झाइमर्स पेशेंट्स ,हूँ स्त्रगिल टू कम्प्लीट दी सिम्प्लेस्त विज्युओ -मोटर टास्क्स।
विज्युओ -मोटर टास्क्स ही गड़- बड़ा जातीं हैं इस न्युरोलोजिकल डि -जेन -रेटिव रोग (डिमेंशिया )में .(समाप्त )

वीडियो गेम्स दिमाग को प्रखर बनातें हैं कठिन काम के लिए तैयार करतें हैं

वीडियो गेमिंग प्री -प्रेयर्स ब्रेन फॉर बिगर टास्क्स(मुंबई मिरर ,सितम्बर २८ ,२०३० ,पृष्ठ २० )।
एक नवीन अध्ययन ने इंगित किया है आज अगर आपका बेटा /बेटी वीडियो गेम्स से चिपके रहतें हैं ,तो कल वह लेप्रा-(लपर -ओ -स्कोपी के माहिर शल्यक ) स्कोपिक सर्जन भी बन सकतें हैं ।
वीडियो -गेमिंग विज़ियो -मोटर स्किल्स (विसुओमोटर स्किल्स ) को प्रखर बनाती है .दरअसल जो युवजन इन गेम्स में मशगूल रहतें हैं उनके दिमाग की सर्किट्री का पुनर- गठन होने लगता है .नेट्वर्किंग कुशाग्र होने लगती है .
अध्ययन के नतीजे जर्नल "एल्सेविएर्स कोर्टेक्स "में प्रकाशित हुएँ हैं .योर्क यूनिवर्सिटी,कनाडा के विजन रिसर्च केंद्र के रिसर्चरों ने १३ ऐसे युवजनों का जो गत तीन बरसों से कमसे कम सप्ताह में चार घंटा वीडियो -गेम्स ज़रूर खेलते थे इसी बीस साला उम्र के इतने ही ऐसे नौज़वानों से जिनका इन खेलों से परिचय ही नहीं था तुलनात्मक अध्ययन विश्लेषण किया ।
हरेक समूह के नौज़वानो को फंक्शन रेजोनेंस इमेजिंग के लिए पोजीशन किया गया .अब इनसे लगातार मुश्किल होती विसुओमोटर टास्क्स को पूरा करने के लिए खा गया .(सच एज यूजिंग ए जोय स्टिक और लुकिंग वन वे व्हाइल रीचिंग एनादर वे ।).
मकसद यह पता लगाना था किस समय दिमाग का कौन सा हिस्सा कम या ज्यादा सक्रीय होता है .मकसद यह भी आकलन करना था वीडियोगेम्स से सीखी समझी गई दक्षता नै और मुश्किल टास्क्स को हल करने में कैसे काम आती है .सिर्फ टास्क्स को हल करते हुए ब्रेन एक्टिविटी ही दर्ज़ करना इस प्रयोग का आशय नहीं था ।
वीडियोगेम्स में अदक्ष लोग के दिमाग के परिटल कोर्टेक्स पर ज्यादा भरोसा कर रहे थे (दिस इज दी ब्रेन एरिया टिपिक्ली इन्वोल्व्द इन हेंड आई कोर्डिनेशन )जबकि दस्क्ष लोगों का भरोसा प्री -फ्रोंतल कोर्टेक्स पर टिका हुआ था .(अट

आधी शीशी के पूरे सिर दर्द (मीग्रैन)को हवा देता है एक दोषपूर्ण जीन

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के साइंसदानों के नेत्रित्व में एक अंतर -राष्ट्रीय टीम ने उस जीन की शिनाख्त कर ली है जिसके दोषपूर्ण होने पर मीग्रेंन भड़कता है .यह निष्कर्ष उन परिवारों के सदस्यों के डी एन ए साम्पिल्स का अध्ययन विश्लेषण करने के बाद निकाले गएँ हैं जिनमे यह रोग चला आया है .पता चला साड़ी गड़- बड़ इसी जीवन इकाई के दोषपूर्ण रह जाने से होती है .यही फाल्टी- जीन दिमाग में पैन नर्व्ज़ को ट्रिगर प्रदान करता है उत्तेजिन कर एड लगाता है .दर्द को उभारता है ।
पूर्व के अध्ययनों में डी एन ए के उस हिस्से का ही विश्लेषण अध्ययन किया गया था जो आम जनता में मीग्रेंन के जोखिम के वजन को बढाने वाला समझा गया था .लेकिन अब खासतौर पर उन जीवन इकाइयों की शिनाख्त की गई है ,रेखांकित किया गया है जो कोमन मीग्रेंन की वजह बनती है .यह भी पता चला है लोग इसके चंगुल में फंसते ही क्यों हैं और कब और किन मामलों में उनकी पीड़ा की वजह उनका परिवार बनतारहा है .
सवाल यह भी उभर कर आया हैदिमागी "पैन सेंटर्स "में मौजूद हमारी नर्व्ज़ कितनी संवेदी हैं ?कौन से" की -प्लेयर्स" हैं जो इस दर्द को भड़- काते हैं ,पैन नर्व्ज़ को उत्तेजन प्रदान करतें हैं ,इन सबकी बेहतर समझ रोग के बेहतर इलाज़ की नै दिशा और रण -नीति को रोशन करेगी .मीग्रेंन के साथ रहने वालों के जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार आयेगा ऐसी उम्मीद की जा सकती है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में "डिस -एबिलिटी "(शारीरिक रूप से कमज़ोर और अशक्त होने )की यह एक बड़ी वजह बना हुआ है .न्युरोलोजिकल डिस -ऑर्डर्स में भी यही सबसे ज्यादा खर्चीला समझा गया है .खासकर योरोप के सन्दर्भ में तो ऐसा धडल्ले से कहा जा सकता है .

सिक्स्थ सेन्स की प्रामाणिकता ?(ज़ारी )

(गत पोस्ट से आगे ...)
और क्योंकि इनके नर्वस सिस्टम एक साथ टिक करने लगते हैं इसीलिए यह दंपत्ति एक दूसरे के मानसिक संवेगों ,आवेगों ज़ज्बातों को जान समझ लेते हैं दूर रहें या पास .साइंसदानों के मुताबिक़ इन अन्वेषणों से ना सिर्फ दम्पत्तियों के परस्पर व्यवहार को जाना समझा जा सकता है खासा इत्तला उनके दोस्तों परिवारियों के बारे भी मिल सकती है .
मनो विज्ञानी जानतें हैं कुछ जोड़े कालान्तर में एक दूसरे की तरह ही सोचना सीख जातें हैं और इसी से वह एक दूसरे के दिल की बात जान लेतें हैं।
लेकिन इस अध्ययन ने तो एक कदम और आगे निकल कर इनके नर्वस सिस्टम का ही जायजा ले लिया .अध्ययन के अगुवा तृषा स्त्रत्फोर्ड के अनुसार जब कपल्स एक आल -तर्ड स्टेट में पहुँच जातें हैं तब वह एक दूसरे का दिमाग पढने समझने लागतें हैं .इसी लिए तो किसी ने कहा होगा :मेरे जैसे हो जावोगे जब इश्क तुम्हें हो जाएगा ....(समाप्त )

छटा ऐन्द्रियसंवेदन कुछ दंपत्ति में क्रियाशील रहता है ?

इट्स ट्र्यू !कपल्स शेयर सिक्स्थ सेन्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २८ ,२०१० ,पृष्ठ १७ )।
साइंसदानों ने अभिनव शोधों से निष्कर्ष निकाला है कुछ पति पत्नी एक दूसरे से दूर रहकर भी एक दूसरे के मन की बात जान लेतें हैं तो इसकी वजह उनके नर्वस सिस्टम्स का ,उनके दिमाग का परस्पर समन्वय ,सिन -क्रो-नाइज़्द होना है ,हार्मनी में आजाना है ।
ऐसा लगता है इन दंपत्तिके शरीर,शरीर किर्याविज्ञान की दृष्टि से एक दूसरे के साथ साथ हो लेतें हैं ,फिजियो लोजिकाली अलाइन हो जातें हैं .यही तो दोनों का सांझा छटा ऐन्द्रिय -बोध (सिक्स्थ सेन्स )बन जाता है ।
सिडनी की यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नो -लोजी(प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय ,सिडनी ) के रिसर्चरों ने बतलाया है वास्तव में कुछ जोड़ों में परस्पर इतना सामंजस्य इतनी ज्यादा हार्मनी (एका )होता है ,इनके दिमाग इनके स्नायुविक तंत्र के साथ एक ताल हो काम करने लगतें हैं .जैसे जिस्म दो हों नर्वस सिस्टम एक ।
यह निष्कर्ष साइंसदानों ने ३० स्वयंसेवियों के दिमाग और हार्ट बीट्स का जायजा लेने के बाद निकालें हैं .यह तमाम जोड़े सलाह मशविरे के लिए कोंसेलार्स के पास नियमित आते थे .इनमे से उन लोगों के दिमाग में एक जैसे पेट- रन्स(पेट्र्न्स )बनते थे दिमागी गतिविधियों के जो एक दूसरे के साथ फिजियो -लोजिकाली अलाइन थे .दूर रहते हुए भी यह लोग एक दूसरे के मन की बात बतला देते थे .ऐसा लगा रिसर्चरों को इनके नर्वस सिसितम हार्मनी में आगएं हैं .

संकोच भावना से बाहर लाने के लिए नेज़ल स्प्रे

नाव ,ए स्प्रे टू कम्बैट शाई -नेस .लव हारमोन ओक्सी -टोसिन बूस्ट्स सोसल स्किल्स व्हेन एड -मिनिस -तर्ड थ्रू नोज़ .रिसर्चर्स से दी फ़ाइन्दिन्ग्स कुड हेव सिग्नीफिकेंट इम्प्ली -केसंस फॉर डोज़ विद सीवियर सोसल डेफि -शियेंसीज़ ,ओफ्तिन अपरेंट इन कंडी -संस लाइक ऑटिज्म .(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २७ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
उन तमाम लोगों के लिए एक अच्छी खबर है जो सामाजिक सभा जलसों ,पारिवारिक समारोहों में संकोच भावना में सिमटे एक तरफ खड़े रहतें हैं अपने को सामाजिक ताने बाने से अलग थलग पातें हैं .घुल मिल नहीं पातें संकोच भावना में फंसे .साइंसदानों ने ऐसे तमाम लोगों की संकोच और झेंप तोड़ने वाला एक नेज़ल स्प्रे तैयार कर लेने का दावा किया है ।
साइंसदानों की इस अंतर -राष्ट्रीय टोली ने पता लगाया है ,दिमागी हारमोन "ऑक्सीटोसिन '"जो तदानुभुती (इम्पैथी ) और दूसरों की भावना को समझ उनसेऔर उनके प्रति सहानुभूति की भावना में वृद्धि करने में मददगार रहता है ,संकोची व्यक्ति की संकोच को भी परे ढकेल उसकी सोसल स्किल्स में इजाफा करता है .बस इसका स्तेमाल एक नेज़ल स्प्रे के रूप में करने की ज़रुरत है ।
लेकिन जो पहले से ही सामाजिक हुनर में आगे हैं आत्मविश्वाश से सराबोर रहतें हैं "ऑक्सीटोसिन हारमोन "उनपर अपना असर ना के बराबर ही दिखाता है .शान होतें हैं महफ़िल कीये ,शान ही रहतें हैंता -उम्र ।
अलबत्ता आत्म -विमोही(ऑटिज्म सिंड्रोम में फंसे )लोगों पर इसका असर पड़ता है ।
बेशक 'ओक्सी-टोसिन हारमोन "सभी को दूसरो की भावना को समझकर उनसे जुड़ने में मदद करता है लेकिन ज्यादा मदद उनकी ही करता हैजो सामाजिक सरोकारों में दक्ष नहीं हैं ,प्रोफि -शियेंत नहीं हैं सोशियाली ।
माउंट सिने स्कूल ऑफ़ मेडिसन ,न्यू -योर्क विश्व विद्यालय के लीड रिसर्चर जेनिफर बर्त्ज़ ने इस शोध का नेत्रित्व किया है .चुनिन्दातौर पर उन लोगों पर ही जो सोसल कोग्नीसन (सामाजिक बोध ,बुद्धि -विलास )में पीछे हैं ऑक्सीटोसिन अपना असर दिखाता है .जो पहले से ही दक्ष है उन पर नहीं ।
अपने अध्ययन में रिसर्चरों ने २७ तंदरुस्त मर्दों पर अपने परीक्षण किये .या तो इन्हें नेज़ल स्प्रे की मार्फ़त हारमोन दिया गया या सिर्फ प्लेसिबो स्प्रे ।
अब इन्हें दूसरों को ज़ज्बाती बातें परस्पर शेयर करते दिखलाया गया .इसके बाद इनसे कहा गया वह बतलाये वह उनके बारे में कैसी तदा -नुभूति रखतें हैं कितना समझ पाए हैं इनकी आप बीती को ,कितनी हमदर्दी रखतें हैं आप इनसे .कितना एमफेथेतिक है आप ?
पता चला ऑक्सीटोसिन इम्पैथी में इजाफा करता है .लेकिन सामाजिक तौर पर संकोची जीवों को ही इसका ज्यादा फायदा पहुंचता है .ऑक्सीटोसिन उनकी सोसल स्किल्स ,सोसल प्रो -फिशियेंसी को बढाता है .दे बिकम मोर इमपेथेतिक.बहिर -मुखी(एक्स -टरो -वर्ट) लोगों की बराबरी करने लगतें हैं ये लोग .

सोमवार, 27 सितंबर 2010

इंग्लैड के रेस्तरां में खाने की सामिग्री की सूची में केलोरीज़ का उल्लेख ज़रूरी

मेंशन केलोरीज़ ऑन मेंयुज़ ,रेस्टोरेंट्स इन ब्रिटेन (यु के )टोल्ड (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २७ ,२०१० ,पृष्ठ २१)।
ब्रितानी रेस्तरां के लिए यह लाजिम कर दिया गया है वह खाद्य पदार्थं सूची का केलोरीज़ मान बतलाएं .इसकी एक समय सीमा भी निर्धारित कर दी गई है ताकि लोग बाग़ जान सके जो कुछ वह खाना चाहतें हैं वह कितना स्वास्थाय्कर है ?
अस्वास्थ्य कर खाद्य से निपटने के लिए यह पहला कदम है .आखिर उपभोक्ता का भी कोई खाद्य अधिकार है .उसका हक़ है वह जाने आखिर वह खा क्या रहा है ?स्वास्थ्य कर या भ्रष्ट भोजन ?

कंप्यूटर पर दिन भर काम करने का खमियाजा "कंप्यूटर फेस "

आवर्स एट पी सी कैन गिव वोमेन रिन्किल्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २७ ,२०१० ,पृष्ठ २१ ).
कंप्यूटर के आगे कूबड़ निकाल कर दिन भर बैठना पीठ और कन्धों को गोलाकार झुकाए रहना सैग्गिंग जाज़( लटके हुए जबड़े,ठोड़ी ) ,स्कुइन्त(भेंगापन ),"कंप्यूटर फेस" के रूप में सामने आसकता है .चेहरे पर झुर्रियां पड़ सकतीं हैं ,tyoriyon पर बल .
और यह हाल तो उन औरतों का है जो बस दस साल से कंप्यूटर स्क्रीन के सामने हैं ,वह युवतियां जो बड़ी ही कंप्यूटर के साथ हुईं हैं उनके साथ और भी बुरा होने वाला है .यह कहना मानना है ,नाम चीन कोस्मेटिक सर्जन्स का ।
मिचेल प्रगेर ,बोटोक्स स्पेसलिस्ट हैं ,आपके अनुसार कामकाजी महिलायें जो कंप्यूटर के सामने लगातार दस दस घंटा दिन भर में बैठे रहने को विवश हैं जल्दी बुढा सकतीं हैं ।
ऐसी महिलाओं की संख्या दिन रात बढ़ रही है जिनकी या तो दो दो ठोड़ -इयान दिखलाई देतीं हैं या जबड़े लटके हुए (नंबर ऑफ़ वोमेन विथ सग्गिंग जोव्ल्स इज इनक्रीजिंग .).वजह है एक ही भंगिमा में बैठे बैठे मुह लटकाए काम करते रहना ।
लगातार नीचे की और तकते रहना कंप्यूटर पर बैठकर गर्दन की पेशियों (नेक मसल्स )पर भारी पड़ रहा है ,छोटे रह जातें हैं नेक्क मसिल्स .समझ लीजिये गर्दन की पेशी का झोल पड़ना यानी दो दो गर्दन दिखना शुरू हो रहा है ।
अगले दस बरसों में स्थिति बद से बदतर हो सकती है ।
बचाव संभव है "कंप्यूटर फेस "से ?
जी हाँ !कंप्यूटर के साथ स्क्रीन की ऊंचाई पर एक शीशा रख लीजिये ,देखिये स्क्रीन को देख कर आपकी त्योरियां तो नहीं चढ़ रहीं हैं ?माथे पर बल तो नहीं पड़ रहें हैं चेहरा बदमिजाज़ तो नहीं दिख रहा है ?
दवाब पूर्ण और चिंतन(चिंता पूर्ण मुख मुद्रा में ) की स्थिति में चेहरा चिड -चिडा दिखने लगता है .और हमें खबर भी नहीं रहती .आखिर अपना चेहरा तकता ही कौन रहता है ?
देखिएगा तो जानिएगा चेहरा आपको ही घूर रहा है बल पड़ रहें हैं माथे पर .कहीं यह मुकम्मिल तौर पर ना पड़ जाएँ ?"कंप्यूटर फेस "आपके चेहरे पर चस्पां ना रह जाए ?
बचा जा सकता है इस स्थिति से हठ जाइए स्क्रीन के सामने से घंटा-दो के बाद बार बार ऐसा करिए .यकीन मानिए बस एक या दो सेशंस बोटोक्स के आप लीजिये "बदमिजाज़ चेहरा "ग्रम्पी फेस "की समस्या समाप्त हो जायेगी ।प्लास्टिक सर्जन और सौन्दर्य के माहिर मिचेल प्रगेर हार्ले स्ट्रीट में अपनी प्रेक्टिस चला रहें हैं .आपका यह दर्द विश्वाश है आप साफ़ बच सकतीं हैं समय रहते कंप्यूटर फेस होने दिखने से .

क्या हैं स्टंट्स ?

यह एक धातु की बनी जाली होती है,जाल होता है (जैसे बाल पेन की रिफिल )वायर- मेश होता है .इसे ख़ास तौर से धमनी के हिसाब से डिजाइन किया जाता है .(आजकल दवा संसिक्त .,दवा सने तथा जैव -निम्नीकृत हो सकने योग्य स्टंट भी आ रहें हैं ).इसे ही धमनी में पिरोया जाता है .आमतौर पर इसे एक बेलून पर चढ़ाया जाता जिसे हिसाब से दाबित किया जा सकता है प्रेशराइज़्द किया जा सकता है .इसे इस प्रकार डिजाइन किया जाता है ,यह बेलून के खुलनेफुलाने के बाद खुले .तथा बेलून के डी -फ्लेट(दबने- बुझ जाने के बाद ) हो जाने के बाद भी यह सदैव ही धमनी को खोले रहे ,साफ़ रखे .इसे धमनी में ही छोड़ दिया जाता है .परम्परा गत स्टंट्स में धमनी के दोबारा सँकरा पड़कर अवरुद्ध हो जाने का ख़तरा बना रहता है .
दवा से भिगोये गये स्टंट्स रिस्टेनोसिस(धमनी के दोबारा अवरुद्ध हो जाने को )मुल्तवी रखते हैं ,ज्यादातर मामलों में ,कभी कभार ही धमनी दोबारा अवरुद्ध होती है ।
दी इंटेंशन ऑफ़ दिस टाइम टेकिंग प्रोसेस देट इजएंजियो -प्लास्टी विद स्तेन्टिंग इज टू स्लो डाउन दी अनवान -टिड ग्रोथ ऑफ़ सेल्स (रिस्टेनोसिस )व्हिच काज़िज़ रिब्लोकेज़िज़ एंड एलाऊज़ दी आर्टरी टू हील .(समाप्त )

क्या किया जाता है "एन -जियो -प्लास्टी "में ?

ब्लोकेद की सीमा क्रान्त्तिक (क्रिटिकल )होने पर लाजिमी होता है धमनी को साफ़ करना ,खोलना .धमनी आंशिक या पूरी तरह अवरुद्ध हो सकती है .यांत्रिक तौर पर इसे चौड़ा किया जाता है .सीवर भी खोला ही जाता है ।
बस केथिटर में एक महीन तार पिरो दिया जाता है .इसे ही अवरोध तक पहुंचाया जाता है .इसे दिस्तलीपार्क करदिया जाता है .(डिस-टल्ली मीन्स लोकेतिद अवे फ्रॉम दी सेंटर ऑफ़ दी बॉडी और अट दी फार एंड ऑफ़ समथिंग .)।
इस तार के ऊपर बेलून केथिटर को पिरोया - जंचाया जाता है,थ्रेड किया जाता है ,और इसे अवरोध के सबसे निचले हिस्से तक ले जाकर पहले फुलाया जाता है और फिर डी -फ्लेट (पूर्व स्थिति में ले आना,जैसे गुब्बारे की हवा निकाल देना ) .कर दिया जाता है .दबा बुझा दिया जाता है .बारबार दबाने फुलाने से प्लाक हठ जाता है .और अब तक अवरुद्ध रहे आये दिल के हिस्से को फिर से पूरा खून पहुँचने लगता है ,रक्तापूर्ति होने लगती है .

क्या मकसद होता है एंजियो -ग्राफी का ?

एन-जाईना की वजह का पता लगाने के लिए एंजियो -ग्राफी की जाती है .कैथ लेब(केथे -टी -राइज़ेशन -लेब ) यह परीक्षण किया जाता है .यह परीक्षण पिन पॉइंट करताहै कहाँ कहाँ कितना ब्लोकेड है ,कितनी धमनिया आंशिक या पूरी तरह अवरुद्ध हो चुकीं हैं .बायाँ वेंट्रिकल(ह्रदय में नीचे के दो छिद्रों में से एक ,छिद्र यानी निलय ) कैसे काम कर रहा है अवरोध की गंभीरता से यह भी जायज़ा लिया जाता है .ज़रुरत पड़ने पर एंजियो -प्लास्टी भी की जाती है .जिसकी चर्चा हम आगे करेंगें ।

एंजियो -ग्राफी में एक महीन( केश- नलीसी ) ट्यूब केथिटर ग्रोइन (उरू -मूल ,शरीर का वह भाग जहां टांगें मिलतीं हैं ,जांघ या जघ्न -प्रदेश )या बाजू की धमनी से पिरोया जाता है .ऐसा लोकल एनेस्थीज़िया देने के बाद (आम तौर पर एक सुईं से एनेस्थेटिक दिया जाता है ग्रोइन में )किया जाता है .अब एक एक्स -रे कंट्रास्ट डाई इंजेक्ट की जाती है केथेटर से होकर हार्ट तक पहुँचती है यह .अब ब्लड वेसिल्स का एक्स -रे उतारा जाता है .जो दिल का पूरा हाल परिह्रिदय धमनियों के अन्दर क्या हो रहा है इसकी खबर देता है .बस यही है रोग निदान की यह टेक्नीक जिसके अनेक रूप प्रचलित हैं :मेग्नेटिक रेजोनेंस एन्जियोग्रेफी ,कम्प्युट -राइज्द टोमो -ग्रेफिक - एंजियो -ग्राफी ,फ्लोर्रिसीन एंजियो -ग्रेफ़ी .(आखिर वाली एंजियो -ग्रेफ़ी का स्तेमाल नेत्र -विज्ञानी करतें हैं .).

विश्व हृद दिव के मौके पर :हृद -शब्दावली

ह्रदय रोग सम्बन्धी कुछ विशिष्ठ शब्दावली की चर्चा करना प्रासंगिक रहेगा .दिल का दौरा आज भी हमारी जान का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है .शुरुआत होती है सीने के हलके- फुलके दर्द से जिसे अकसर गैस बनरही है कहकर टाल दिया जाता है या फिर तेज़ाब बनरहा है ,एसिडिटी(अम्ल शूल ) हो रही है समझ लिया जाता है .
बस यही शुरूआती लक्षण अगर पकड़ में आजाये तो ज्यादा बड़ी आफत हार्ट अटेक से आगे चलकर बचा जा सकता है .हृद वाहिकीय रोगों(कार्डियो -वैस्क्युलर डिजीज ) के प्रति भी खबरदार रहा जा सकता है .लक्षणों की तेज़ी और उग्रता को देखते हुए रोग को रास्ते में ही थामा जा सकता है .कई चरण हैं ,प्रावास्थायें हैं परिहृदय धमनी - रोगों की .
ह्रदय शूल या एन -जाईना पेक्टोरिस को लेतें हैं ।
एन -जाईना सीने में लौट लौट कर बारहा होने वाली तकलीफ है दर्द है .ऐसा तब होता है जब दिल के किसी हिस्से को पूरा रक्त नहीं मिलता .रक्तापूर्ति में कमी रह जाती है .यह परिहृदयधमनी -रोग का आम लक्षण है और सीने की हड्डी के नीचे से उठने वाले इस दर्द की वजह बनती है हृद धमनी का अन्दर से खुरदरी और संकरी पड़-जाना ,आंशिक तौर पर अवरुद्ध हो जाना (आथिरो -स्केलेरोसिस )।
एन-जाईना को रेडियेटिंग पैन भी कह दिया जाता है क्योंकि यह अमूमन सीने की हड्डी स्टर्नम से उठकर कंधो से होता हुआ बाजू तक आता है ,उँगलियों तक भी पहुंचता है .जबड़े ,गर्दन ,कमर ,ऊपरी एब्डोमन में भी आजाता है यह हृदयशूल .अमूमन एग्ज़र्शन (ज़रुरत से ज्यादा लगातार काम करना )इसकी वजह बनती है लेकिन ज़रूरी दवा फ़ौरन ज़बान के नीचे रखने से ,रुक कर सुस्तानेपर आराम भी आजाता है .दर्द चला जाता है .(आइसोर्दिल ,आइसोसोर्बाइद- मोनो तथा डाई -नाइट्रेट ,फाइव नाईट -रेट्स ,सोर्बित्रेट आदि गोलियां जीवन रक्षक सिद्ध होती हैं .बतलाकर आता है एन -जाईना इसलिए इसकी अनदेखी करना आगे के लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है .साइलेंट किलर को न्योत सकता है .

रविवार, 26 सितंबर 2010

स्वस्थ जीवन शैली के लिए ..(गत ओसत से आगे )..

(विश्व-हृद -स्वास्थ्य दिवस पर ,ज़ारी .....)
दिनभर में पांच बार ताज़े फल और तरकारियों का सेवन कीजिये .संतृप्त वसा (सेच्युरेतिद फैट्स )से तैयार खाद्यों से परहेज़ रखिये .इनमे अकसर सोडियम लवण का भी बाहुल्य होता है .जो उच्च रक्त चाप की वजह बनता है ।
सिर्फ दिन भर में तीस मिनिट व्यायाम भी ज़रूरी है .हृद रोग और आघात (स्ट्रोक )यानी सेरिब्रल वैस्क्युलर एक्सिदेंट्ससे भी बचे रहें गें ।
अगर धूम्रपान करतें हैं ,छोड़ देने से साल भर में हृद रोगों के खतरे का वजन घट कर आधा रह जाएगा और कालातरख़तरा और भी कम होकर सामान्य स्तर पर आजायेगा .
वजन को कम रखना(कद काठी के अनुरूप बनाए रखना ) ,टेबिल साल्ट की मात्रा को घटाना ब्लड प्रेशर को" लो "रखता है ."हाई -ब्लड प्रेशर" आघात के खतरे के लिए सबसे बड़ा अकेला ट्रिगर है .तकरीबनहृद रोगों के आधे गंभीर मामलों में तथा स्ट्रोक में यही कुसूरवार निकलता है ।
वक्त वक्त पर ब्लड प्रेशर ,ब्लड कोलेस्ट्रोल और ग्लूकोज़ स्तर ,कटि-प्रदेश के घेरे और नितम्ब के घेरे के अनुपात का, ,बी एम् आई (बॉडी मॉस इंडेक्स ,आपके किलोग्रेम वेट और मीटर में अभिव्यक्त हाईट के वर्ग के अनुपात (किलोग्रेम /मीटर स्क्वायर )का रिकार्ड रखिये .रिस्क्स फेक्टर को जान लेने के बाद काबू में रखिये ।
शराब का सीमित सेवन ही कीजिएगा .बेहिसाब पीना एक तरफ ब्लड प्रेशर दूसरी तरफ आपके वेट को बढ़ाएगा .जिस तरह चीनी का मतलब फैट होता है वैसे ही शराब की एम्प्टी केलोरीज़ का मतलब भी वसा ही चढ़ना होता है ।
(ज़ारी ....)

प्रति -पाद्य (विषय वस्तु )क्या है विश्व -हृद दिवस २०१० की ?

काम- काजी जगह का चंगापन(वेलनेस )यही है प्रति -पाद्य (विषय वस्तु) इस बरस वर्ल्ड हार्ट -डे का .कामकाजी जगह के तंदरुस्त माहौल से जुडी है हमारे दैनिक व्यवहार की नव्ज़.एक आदर्श काम- काजी स्थल (कार्य- स्थल)हृद रोगों और सेरिब्रल वैस्क्युँलर एक्सिदेंट्स से बचे रहने के लिए कितना ज़रूरी है यही है इस बरस का विमर्श ।
आखिर मुलाज़िमों की सेहत से ही जुडी हैकिसी भी व्यवसाय(बिजनिस हाउस )की नव्ज़ .इसे कई ने इस दौर में पहचाना है और अपने कोर्पोरेट एजेंडा में इसे जगह दी है .आखिर काम करने की जगह किसी एक आदमी के बनाए तो अच्छी होगी नहीं तमाम मुलाज़िमों का अपना अपना योगदान भी उतना ही ज़रूरी है . हार्ट हेल्दी हेबिट्स मुलाज़िमों की मार्फ़त हीउनके घर दुआरे,मित्रों तक पहुंचेंगी ऐसा माना समझा जा सकता है .
आइये आंकड़ों की जुबानी परिदृश्य पर एक निगाह डाली जाए .फिलवक्त दुनिया भर में ४० करोड़ लोग ओबेसी हैं (मोटापा -रोग सेग्र्स्त हैं .).१.६ अरब का वेट आदर्श कद काठी से ज्यादा है (ओवरवेट हैं ये लोग ,इनका वजन आदर्श भार के १२० फीसद से भी ज्यादा है .).बच्चे भी मोटापे की जद में आरहें हैं .दुनियाभर में कुलमिलाकर १५.५ करोड़ बच्चे ओवरवेट हैं ।३-४.५ करोड़ मोटापा -रोग से ग्रस्त हैं .ओबेसी हैं .
कई विकाश -शील देश एक साथ कुपोषण और मोटापे की मार झेल रहें हैं .संतृप्त और ट्रांस -फैट्स (कथित हाइड्रो -जिनेतिद वानस्पतिक तेलों से तैयार खाद्य ) सनी खुराक इसकी लगातार वजह बनी हुई है .नतीजा है एब्नोर्मल ब्लड लिपिड्स (हाई -बेड- ब्लड कोलेस्ट्रोल .हाई -ट्राई -ग्लीस -राइड्स )।
दिल की सेहत के लिए ताज़े फलों और तरकारियों का सेवनखुराक में ज़रूरी है .दुनिया भर में फल और तरकारियों का कमतर सेवन कमसे कम २० फीसद हृद -वाहिकीय रोगों की वजह बना हुआ है .हाई -पर -टेंशन प्रबल ट्रिगर (एक बड़ा जोखिम )बना हुआ है कार्डियो -वैस्क्युलर डी -जीज़िज़ के लिए .सोडियम बहुल खुराक इसे लगातार बढा रही है .केवल एक ग्रेम खुराकी सोडियम को कम करके (तीन ग्रेम प्रति -दिन पर टिके रहकर )हाई -पर -टेंशन के मामलों को ५० फीसद कम किया जा सकता है ,ऐसे मामले जिन्हें इलाज़ की ज़रुरत है ,हाई -पर -टेंशन के प्रबंधन की दरकार है ।
दिन भर में पी जाने वालीकुल बीडी सिगरेट के अनुरूप ही रोज़ -बा -रोज़ बढ़ता ख़तरा धूम्र्पानियों के लिए मौत के जोखिम को नॉन -स्मोकर्स के बरक्स दोगुना करदेता है .(एक अधययन )।
बैठे ठाले एक निष्क्रिय भौतिक दैनिकी में हम अपने लिए हृद रोगों से पीड़ित होने का ख़तरा डेढ़ गुना बढा लेतें हैं .तथा जीवन शैली से पैदा होने वाली सेकेंडरी डाय -बिटीज़ के खतरे का वजन दोगुना कर लेतें हैं .
दुनिया भर केएक चौथाई किशोर- वय, धूम्र -पानी अपनी पहली सिगरेट दस साल की छोटी उम्र में ही सुलगा लेतें हैं .अब यदि यह लत बरकारार रहे आती है तब इनमे से आधे बच्चे धूम्र -पान से पैदा रोगों की वजह से ही मर जातें हैं .(ज़ारी ....)
सन्दर्भ- सामिग्री :-टाइम्स .कोम /वर्ल्ड हार्ट डे /वर्क प्लेस वेलनेस /सन्डे टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २६ ,२०१० ,पृष्ठ ०६ ).

विटामिन -बी -१२ की कमीबेशी का ख़तरा औरतों को क्यों ज्यादा बना रहता है ?

वोमेन एट हाई -रिस्क फॉर बी -१२ डेफिशियेंसी .एक्स -टेन -डिड यूज़ ऑफ़ ओरल कोंट्रा -सेप -टिव्ज़ पुट्स वोमेनएट ग्रेटर रिस्क ,सेज स्टडी (मुंबई मिरर ,सन -दे सितम्बर २६ ,२०१० ,पृष्ठ २५ ).
यदि आपको कभी ना उतरने वाली चिरकालिक (दीर्घावधिक )थकान बनी रहती है ,कब्ज़ी(कोंस्टी-पेशन ) ,यादाश्त ह्रास (मेमोरी लोस ),के अलावा आप नर्वस रहतें हैं /रहतीं हैं ,खून की कमी बनी रहती है ,अकसर आधी शीशी का पूरा सिर दर्द रहता है ,आप जल्दी चिड -चिड़े (खीझ )हो जातें हैं ,आप विटामिन बी -१२ की कमी से ग्रस्त हो सकतें हैं ।
विटामिन बी -१२ लाल रूधि कोशाओं (रेड ब्लड सेल्स )डी एन ए संस्लेषण ,ब्लड सेल्स की टूट फूट की मरम्मत करने के लिए ज़रूरी और एहम रहता है .महत्वपूर्ण बना रहता है .यहाँ तक की नर्वस सिसितम(हमारे स्नायुविक तंत्र )के ठीक से काम करते रहने के लिए भी यह ज़रूरी है .बढ़वार के लिए भी .
कमी बेशी की दो वजहें बनतीं हैं .या तो हमारा शरीर विटामिन बी -१२ ज़ज्ब ही नहीं कर पाता है या फिर या फिर हमारी खुराक में इसकी कमीबेशी बनी रहती है ।
अलावा इसके औरतों में इसकी कमी की लपेट मेंआने का ख़तरा अपेक्षाकृत कम उम्र में ही पैदा हो जाता है बरक्स मर्दों के .मेट्रो -पोलिस हेल्थ के-यार लिमिटिड द्वारा हाल ही में संपन्न एक सर्वे से पता चला एक साल के दरमियान जहां मर्द एब्नोर्मल विटामिन बी लेविल्स की गिरिफ्त में औसतन ४५ से ऊपर की उम्र में आये वहीँ औरतें १६ -४५ साल के दरमियान ही इसके असामान्य स्तर से ग्रस्त देखी गईं ।
२००९-२०१० तक यह अध्ययन ७६,०८७ मरीजों पर चला .पता चला इस विटामिन की कमी का अनुपात मर्दों और औरतों में एक और दो का देखा गया (वन इज टू )।
इसकी वजह चिकित्सक एक तरफ मॉल -एब्ज़ोर्प्शन सिंड्रोम को बतलाते ठ्हरातें हैं वहीँ शाका -हारी खुराक तथा महिलाओं द्वारा गर्भ निरोधी टिकिया का अकसर सेवन करना बतला रहें है .धूम्रपान और एल्कोहल का सेवन इसकी और वजहें हैं ।
विटामिन बी -१२ के खुराख में शामिल रहते हुए भी ओरल कोंट्रा -सेप -टिव पिल्स कुछ हारमोंस का स्तर इस कद्र बढा देती हैं ,खुराक से बी -१२ की ज़ज्बी मुश्किल हो जाती है .अलावा इसके सिगरेट और शराब भी बी -१२ की ज़ज्बी को दुष्कर बना देतीं हैं .नतीजा होता है खून की कमी ,न्यूरो -लोजिकल डिस-ऑर्डर्स तथा दिल की बीमारियाँ .यही कहना है डॉ .निशा एहमद का .आप लेब सर्विसिज़ ,मेट्रो -पोलिस की मुखिया हैं ।
कैसे असर ग्रस्त करती है गर्भ -निरोधी टिकिया ?कैसे प्रभाव डालतीं हैं ?
उपरोक्त लक्षणों के संग (औरतें जो ओरल पिल्स का दीर्घावधि स्तेमाल करतीं हैं )उनमे सायलेंट किलर समझे जाने वाले आथिर -ओ-स्केल्रोसिस के खतरे का वजन भी बढ़ जाता है .जो स्ट्रोक बनके चुपके से आ जाता है .माहिरों के अनुसार शाकाहारी लोगों में बी -१२ की कमी के खतरे की प्रवृत्ति ज्यादा देखी जाती है .सामिष भोजियों के यह रुझान कम दिखलाई देता है ।
क्यों गंभीर है बी -१२ की कमीबेशी ?
इसकी कमी से ग्रस्त होने पर रेड ब्लड सेल्स का बनना कमतर हो जाता है जो तमाम शरीर की कोशाओं तथा ऊतकों तक ऑक्सीजन पहुंचातीं हैं .
इलाज़ (ट्रीटमेंट )क्या है ?विटामिन बी -१२ के इंजेक्शन तथा संपूरक गोलियां दी जातीं हैं (ओरल पिल्स ,बी -१२ सप्लीमेंट्सकी ).
लक्षण क्या हैं बी -१२ की कमी के ?
चमड़ी का पीलापन (पेल स्किन ).कमजोरी महसूस होना ,थकान तथा लाईट -हेडिद रहना .यानी स्लाइतली दिज्ज़ी (चक्कर आना ),अति -उल्लास का महसूस होना बिना बात ,मूर्खता पूर्ण बचकाना हरकत करना .अतिसार (डायरिया )या फिर क्ब्ज़ी की शिकायत रहना .फील सिक टू योर स्टमक ,वेट लोस .सोर,रेड टंग या फिर मसूड़ों से खून आना (पायरिया ).

हृद -रोगों से जुड़े कुछ आम खतरे

ए फ्यू रिस्क्स फेक्टर्स :
(१)जेंडर :मर्दों के लिए दिल केरोगों का ख़तरा औरतों के बरक्स ज्यादा बना रहता है .रजोनिवृत्त औरतों के लिए दिल केखतरे के वजन को बढा सकती है .क्योंकि इस चरण में आने के बाद इस्ट्रोजन का स्तर कम होता चला जाता है .अलबत्ता नै रिसर्च औरत के दिल के लिए सौ जोखिम बतलाती है इस परम्परा गत पुरुष प्रधान सोच से इत्तेफाक नहीं रखती है ।
(२)जिन लोगों के परिवार में हृद रोग चलते आयें हैं उनके लिए एक से ज्यादा जोखिम मौजूद रहतें हैं ।
(३) एज :मर्दों के लिए ४५ साल के पार तथा औरतों के लिए ५५ के पार हृद रोगों के खतरे का वजन ज्यादा बढ़ जाता है ।नै रिसर्च के अनुसार खतरे का वजन औरत के लिए ज्यादा बना रहता है .फोकस में नहीं रही है औरत हृद रोगों के .आये गये ढंग से लिया गया है उसके दिल को .
हमारा दिल दिन में एक लाख बार लुब डूब करता है खून उलीचता ५-६ लीटर प्रत्येक मिनिट ,चौबीसों घंटा .सबसे ज्यादा एहम अंग है शरीर का .सांस की धौकनी और उसकी खुशबू दिल से जुडी है .हमें इस ख़ास और विशिष्ठ अंग की हिफाज़त संभाल करनी चाहिए जहां तक भी संभव हो .(समाप्त )

विश्व -स्वास्थ्य दिवस के मुके पर जानिये दिल का हाल (ज़ारी )

(गत पोस्ट से आगे ....)
जुपिटर अस्पताल थाणे के इंटर -वेंशनल कार्डियो- लोजिस्ट डॉ राजीव कार्निक बल देते हुए दृढ़ता पूर्वक कहतें हैं हृद रोगों के बढ़ते हुए खतरों के प्रति खबरदाररहना भारत के सन्दर्भ में विशेष मानी रखता है जो हृद रोगों के मामले में सबसे आगे बना हुआ है ,विश्व -स्वास्थ्य संगठन के एक आकलन के अनुसार इस साल के आखिर तक दुनिया भर के कुल हृद रोगियों का ६० फीसद मरीज़ भारत में डेरा डाले होगा .भारत वासी होगा .
जितने ज्यादा रिस्क फेक्टर्स मौजूद रहें गें हृद रोगों का,परि -ह्रदय धमनी रोगों का ख़तरा उसी अनुपात में आपके लिए बढ़ता चला जाएगा .अलावा इसके जितना ज्यादा वजन हरेक जोखिम का होगा उसी अनुपात में ख़तरा भी और भी ज्यादा बढेगा ।
दरअसल हमारा सामाजिक आर्थिक ढांचा हमसे बराबर उन खतरों की अनदेखी कराता रहता है जिनकी शिनाख्त आसानी से हो जाती है और जिन्हें मुल्तवी रखा जा सकता है .स्वास्थ्य के प्रति चेतना का अभाव घर बाहर ,काम- काजी स्थल पर फैला पसरा तनाव (स्ट्रेस लेविल जो कम होके नहीं देता ),नकारात्मक सोच और संवेग (निगेटिव इमोशंस )तथा बिन मांगी विरोधी और भ्रम पैदा करने वाली सलाह स्थिति को बद से बदतरीन बनाती रहती है .
५२ देशों में संपन्न एक हालिया "इंटर -हार्ट स्टडी"में ऐसे नौ बड़े जोखिमों को रेखांकित कियागया है जो दुनिया भर में हार्ट अटेक्स के ९० फीसद मामलों कीवजह बने हुएँ हैं .डायबिटीज़ ,लिपिड एब्नोर्मलेतीज़(हाई बेड ब्लड कोलेस्ट्रोल "एल डी एल" तथा "हाई -ट्राई -ग्लीस -राइड्स ") ,हाई -पर टेंशन ,तम्बाकू का चलन ,असामान्य मोटापे की जद में बने रहना ,कम फल और तरकारियों का सेवन तथा अनेक मनो वैज्ञानिक वज़ूहातें (किसी भी धार्मिक या इतर वजह से एल्कोहल से परहेजी ),बैठे बैठे काम करने की नियति ,व्यायाम कादैनिकी से नदारद रहना ,बड़े जोखिम रहे आयें हैं ।
जब पहल हो जाए तब जल्दी "इट इज नेवर टू अर्ली एंड नेवर टू लेट टू स्टार्ट टेकिंग के -यार ऑफ़ योर हार्ट "यही कहना मानना है प्रोफ़ेसर शहर- यार,विश्व -हृद संघ के मुखिया का ।
एक समुचित जीवन शैली को अपनाकर अभी भी बहुत कुछ किया जा सकता है .बस कुछ जोखिमों को पहचान कर गांठ बाँध लें इनकी अन -देखी नहीं करनी है .(ज़ारी )

विश्व -ह्रदय दिवस के मौके पर कुछ बात दिलों की,दिल के मामलों की हो जाए

वर्ल्ड हार्ट डे स्पेशल (ए कंज्यूमर कनेक्ट इनिशिएटिव ,डॉ .पारुल आर सेठ ,मुंबई मिरर ,सन्डे ,सितम्बर २६ ,२०१० ,पृष्ठ ३३ )।
बेशक दिल के लिए कुछ जोखिम बने रहतें हैं जिनका वक्त रहते वक्त बे -वक्त जायजा लेकर हृद रोगों से अपेक्षाकृत बचे भी रहा जा सकता है ।
आपकी उम्र ,वंशावली का हृद रोग सम्बन्धी पूर्व वृतान्त (फेमिलियल हिस्ट्री ),हाई -ब्लड प्रेशर ,हाई बेड कोलेस्ट्रोल (खून में घुली एल डी एल चर्बी और ट्राई -ग्लीस -राइड्स की बेहिसाब मात्रा ),ब्लड सुगर लेविल्स ,आपकी कद काठी (हाईट ),वेस्ट तू हिप रेशियो ,एब्डोमिनल ओबेसिटी आदि ऐसे रिस्क फेक्टर्स है जिनके प्रति सचेत रहकर हृद रोगों को मुल्तवी रखा जा सकता है .स्ट्रोक (सेरिब्रल वैस्क्युलर एक्सिदेंट्स )से भी समय रहते बचा जा सकता है ।
इन दोनों ही वजहों से (हार्ट दिजीज़िज़ तथा स्ट्रोक्स )से दुनिया भर में हर साल एक करोड़ पिचहत्तर लाख लोग शरीर छोड़ जातें हैं .इतने ही लोग कुल मिलाकर इस दौर की अन्य बीमारियों से यानी एच डायबिटीज वी -एड्स ,मलेरिया ,daay -biteez ,tamaam tarh ke kainsars aur saans sambndhi bimaariyon ki bhaint chdhten hain .

vishv -svaasthay sangathhan ke ek anumaan ke mutaabik 2025 tak duniyaa bhar me har teesraa aadmi doosre shbdon me takreeban dedh arab log 25 saal se oopar ki umr ke bld preshar ki shikaayat se grst rhne lagengen jo hrid rogon aur strok kaa ek sabse bdaa gyaat risk fektar siddh huaa hai .(zaari )

यकीं मानिए जब आप सीढ़ी के ऊपरले पायदान पर खड़े होतें हैं आपकी जैव घडी तेज़ हो जाती है ,बढाने लगतें हैं आप

स्टेंडिंग ऑन ए स्टे-यर केस मेक्स यु एज फास्टर (मुंबई मिरर ,साइंस -टेक सितम्बर २५ ,२०१० ,पृष्ठ २६ )।
भले ही आप यकीन करें ना करें ,जब आप छत पर खड़े होतें हैं तब भू -तल(पहली मंजिल )के बरक्स आपकी उम्र में इजाफा होने लगता है आप अपेक्षाकृत जल्दी बुढ़ाने लगतें हैं .आपकी सर्कादियंन रिदम तेज़ हो जाती है ।
रिसर्चरों ने पता लगाया है आइन्स्टाइन का सिद्धांत भू -सम्बद्ध ,अर्थ बाउंड दूरियों और समय के सांचों (टाइम फ्रेम्स ) को असर ग्रस्त करता है इसका मतलब यह हुआ ,वह घडी जो आपके बरक्स(आपकी विराम स्थिति में आपके पास जो घडी मौजूद है ) तेज़ गति से आगे बढ़ रही है धीमे धीमे टिक टिक करेगी .यानी रनिंग क्लोक लूज़िज़ टाइम फॉर एन स्टेशनरी ऑब्ज़र्वर .विशेष सापेक्षवाद के तहत यही" टाइम- डाय -लेषण" कहाता है .
आइन्स्टाइन का एक और सापेक्षवाद है जिसे गुरुत्व सम्बन्धी सापेक्षवाद कहा जाता है .इसकी समीकरण बतलातीं हैं गुरुत्व भी समय के प्रवाह को असर ग्रस्त करता है .ग्रेविटी स्लोज़ डाउन और डाय -लेट्स टाइम .कल्पना यह भी आइन्स्टाइन ने की थी यदि भविष्य में कोई अन्तरिक्ष यात्री किसी अति -गुरुत्वीय पिंड "ब्लेक होल्स "के नज़दीक भी पहुँच गया ,उसकी घडी की सुइयां ठहर जायेगीं ,हेंड्स ऑफ़ हिज़ क्लोक वुड बिकम स्टेशनरी .प्रकाश भी अपने सरल रेखात्मक मार्ग से विचलित हो जाएगा जबप्रकाश ऐसेकिसी भीम काय गुरुत्वीय पिंड के पार्श्व से गुजरेगा .आकाश काल मुड- तुड जाएगा ,टाइम एंड स्पेस वुड बी डिस -टोर्तिद,प्रजेंस ऑफ़ मैटर गिव्स स्पेस एंड टाइम ए कर्वेचर ।मैटर मीन्स ग्रेविटी .
यानी इसका सरल भाषा में अर्थ यह लगाया जाए ,अगर आप शक्ति शाली गुरुत्व बल अनुभव कर रहें हैं ,तब आपके लिए समय का प्रवाह मंदा पड़ जाएगा .टाइम विल गो स्लोवर ।
यह खबर नेशनल जोग्रेफिक न्यूज़ के सौजन्य से नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्टें -दर्ड्स एंड टेक्नोलोजी के जेम्स चिन -वेन चौ ने दी है .
आपने समय के मापन के लिए दो अति -शुद्ध (अल्ट्रा- प्री -साइस एत्मोस्फीयारिक क्लोक्स )का स्तेमाल कियाहै
।बस एक घडी को दूसरी से एक फीट ऊपर ले जाकर दोनों से एक साथ समय का मापन किया गया .ज़ाहिर है दो अलग अलग प्रेक्षकों ने ऐसा किया होगा .पता चला जो घडी ऊंचाई पर ले जाई गई थी सिर्फ एक फीट की वह तेज़ी से टिक करने लगी थी .क्योंकि उसके लिए गुरुत्व का मान थोड़ा कम हो गया था .पृथ्वी के केंद्र से दूर जाने पर गुरुत्व बल की शक्ति क्षीण होती जाती है .दूरी के वर्ग के साथ विलोम अनुपात में कम होने लगती है .यानी दूरी पहले से दोगुनी होने पर ताकत पहले से घटकर एक चौथाई रह जाती है .दूरी तीन गुना होने पर,नौवां हिस्सा ही रह जाती है गुरुत्व बल की शक्ति ।
यदि इस घडी को आइन्दा आने वाले सौ सालों तक एक फीट ऊंचाई पर ही बनाए रखा जाए ,तब इसमें १०० नेनो -सेकिंड्स का फर्क पैदा हो जाएगा .(इट विल रिकोर्ड लेस टाइम ,लेस बाई १०० नेनो सेकिंड्स )भू -तल पर रखी गई घडी के बरक्स ।
इसका मतलब हुआ हमारे दैनिक जीवन में समय का प्रवाह एक समान नहीं रहता है .पिछली पीढ़ी
की घड़ियाँ इस सूक्ष्मतर समय -अंतराल की माप नहीं रख पातीं थीं .
यही कहना है साइंसदान चौ का जिन्होंने इस अधययन के नतीजे ब्रितानी विज्ञान पत्रिका साइंस में प्रकाशित किये हैं .
किसी मंजिल के ऊपरले माले पर रहते हुए आप तेज़ी से बुढा -एंगें बरक्स नीचे वाले माले के वासिंदों के .बा -शर्ते बाकी हालत यकसां हों ।
जब आप ज़मीं पर भी खड़ें हैं ,आपके शरीर के अलग अलगआंगिक - तंत्र ज़मीन से अलग अलग ऊंचाई पर हैं ,इसीलिए इनके बुढा -ने का दर्जा और दर भी अलग अलग रहेगी ।
हमारी जैव घडी भी तो इन्हीं नियमों कायदों का अनुसरण करती चलती है .भौतिक घड़ियों के नियम हमारी जैव रासायनिक प्रक्रियाओं पर बायो -रिदम पर भी लागू होतें हैं।
दिमाग की प्रक्रियाएं पैरों के तलुवों में चलने वाली प्रक्रियाओं से अलग रफ्तार पर चलेंगी .दिमागी प्रक्रियाएं तेज़ चलेगीं ।दिमाग ज़मीन से ऊंचाई पर जो है जबकि पैर ज़मीं पर टिके हैं .
गगन चुम्बी इमारत की सबसे ऊपरली इमारत पर रहने वालों के लिए भी भले ही कितना कमतर क्यों ना हो यह अंतर दर्ज़ किया जा सकता है .७९ साला हमारी कुल जीवन अवधि में उम्र भर में सबसे ऊपरली मंजिल में रहने वालों के लिए ९० बिलियंथ ऑफ़ ए सेकिंड का अंतर तो आही जाएगा .बेशक यह ज़वान बने रहने का नुश्खा ना सही पहली मंजिल वालों के लिए ,भू -भौतिकी और इतर विज्ञानों में इस अंतर के महत्व को नजर -अंदाज़ नहीं किया जा सकता .

फोन पर हेलो का चलन कैसे शुरू हुआ था ?

हाव डिड "हेलो "कम टू बी यूज्ड एज ए ग्रीटिंग ओवर दी फोन ?/ओपन स्पेस /सन्डे टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,सितम्बर २६ ,२०१० ,पृष्ठ २८ )।
सबसे पहले नौका या समुद्री जहाज की यात्रा से सम्बंधित अभिवादन "नौटिकल ग्रीटिंग अहोय " चलन में आया .वजह भी एक दम से साफ़ थी पहली नियमित दूरध्वनी प्रणाली (टेली -फोन सिस्टम ) मेरीटाइम स्टेट( समुन्दर के किनारे बसे ) कांनेक्टिकुत राज्य में शुरू हुई ।
एल्ग्ज़ेन्दर ग्राहम बेल (टेली -फोन के अन्वेषी )ने दूरध्वनी वार्ता का ज़वाब स्कोट -लैंड की सेल्टिक भाषा में प्रयुक्त शब्द "होय "से दिया ।
समझा जाता है आश्चर्य बोधक शब्द "हेलो "का पहले पहल स्तेमाल टोमस एडिसन साहिब ने किया .जो आज तक ज़ारी है ।
एक मान्यता कुछ लोगों की यह भी है अपने आविष्कार से उल्लसित होकर आपने अपनी मित्रा को काल किया जिसका नाम इत्ते - फाकन "हेलो "था .कुल मिलाकर जितने मुह उतनी बातें .बस उनके मुख से टेली -फोन पर निकला पहला शब्द "हेलो "ही अभि- वादन के रूप में चल निकला .
इस अभिवादन के चलन से पहले टेली -फोन ओपरेटर महज़ पूछा करते थे :आर यु दे -यर ?

क्या है हुब्बेर्ट पीक थियरी ?

व्हाट इज दी हुब्बेर्ट पीक थियरी ?/ओपन स्पेस /सन्डे टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर ,२६,२०१० ,पृष्ठ २८ )।
इस थियरी का नामकरण अमरीकी भू -भौतिकी -विद (जियो -फिज़िशिष्ट )एम् किंग के नाम को अमरत्व प्रदान करने के लिए किया गया है .इस उप -पत्ति(सिद्धांत या परिकल्पना )की तर्क आधारित मान्यता है ,विश्वाश है ,किसी भी भौगोलिक क्षेत्र के किसी भी एक इलाके में हमारे इस समूचे ग्रह के सापेक्ष पेट्रोलियम उत्पादन की दर को भलीभांति एक बेल -शेप्ड कर्व ही व्याख्यायित करता है .इसका मूल आशय साफ़ है किसी भी इलाके में तेल के सीमित भण्डार ही होतें है इसीलिए तेल उत्पादन दर का शीर्ष भी जल्दी ही आजाता है .उसके बाद उत्पादन दर गिरने लगती है ,गिरती चली जाती है ।
किसी देश की औसत आय के साथ भी यही ग्राफ लागू होगा .किसी भी मुल्क में नव -धनाड्दय(निओ -रिच्स )अरब -खरब- पतियों की संख्या सीमित होती है .नितांत दरिद्र लोग भी सीमित होतें हैं ,बहुलांश बीच के लोगों का होता है .जिनकी आय ही औसत आय का सही प्रति निधित्व करती है ।
ठीक ऐसे ही अति -मेधावान और मंद बुद्धि लोगों की तादाद सीमित होती है बहुलांश लोग औसत बुद्धि के ही स्वामी होतें हैं .तो ज़नाब यह इनवर्तिद- बेल- शेप्ड- कर्व ,प्रतिनिधित्व करता है एक से ज्यादा चीज़ों का सिर्फ किसी इलाके में तेल उत्पादन की दर ही नहीं औसत बुद्धि तत्व ,किसी देश के नागरिकों की औसत आय भी इसी कर्व से रेखांकित होती है .

ये रीहुक क्या है ?

व्हाट इज ए री -हुक ?/ओपन स्पेस ,सन्डे टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २६ ,२०१० ,पृष्ठ २८ )।
साइकियेट्री में एक टर्म यूज़ होता है "हुकिंग ".मनोरोगियों की मनो -रोगों में प्रयुक्त दवाओं से (एंटी -डिप्रेसेंट्स ,एंटी -ओब्सेसिव ,न्यूरो -लेप्तिक ,साईं -कोटिक )दवाओं से हुकिंग हो जाती है यानी दवाओं के बिना वह रह नहीं पाता जब तक वह दवा नहीं खा लेता उसे चैन नहीं आता ।
एक और भी सन्दर्भ है री -हुक का .आपको याद होगा एम् ऍफ़ हुसैन साहिब ने" हम आपके हैं कौन "फिल्म ७० -७५ बार देखी यह एक और तरह की री -हुकिंग थी .माधुरी दीक्षित का रूप लावन्य,देह -यस -टी ,अप्रतिम सौन्दर्य (फिगर )फेस ब्यूटी हुसैन साहिब के दिलो दिमाग पर हावी हो गई थी ।
इन दिनों "दबंग "के साथ भी यही हो रहा है ।"तेरे मस्त मस्त दो नैन हों "या "मुन्नी बदनाम हुई डार्लिग तेरे लिए" दर्शकों को बारहा सिनेमा हाल की और खींच रहें हैं .
री -हुक एक ऐसी फिल्म को कहा जासकता है जिसे बारहा देखने से भी आपका जी नहीं भरता ,तलब बढती है .बढती रहती है बार बार देखने के बाद भी ।
यही ब्लोक बस्टर्स फिल्म द्वारा बे शुमार धन राशि बटोरने कमाने की वजह बनतीं हैं ..बनती रहीं हैं देशी विदेशी सिनेमा में ।
मुगले -आज़म से लेकर शोले तक ,"गोन विद दी विंड "टाइटेनिक "से लेकर तक "इंसेप्शन "तह यही होता रहा है हो रहा है .कई बार फिल्म की कथा ,कथानक और प्लाट ही इतना उलझा हुआ प्रतीत होता है ,बारहा देखना ,हर बार थोड़ा थोड़ा समझना मजबूरी हो जाती दर्शक की, यही तो वह जादू है जो सिर चढ़ के बोलता है इस जादू का ही दूसरा नाम है "री -हुक "क्या समझे आप ?

शनिवार, 25 सितंबर 2010

ग्रेविटेशनल "टाइम दायलेशन" और आइन्स्टाइन ?

आइन्स्टाइन महोदय ने एक मर्तबा कहा था -भविष्य में यदि कोई अन्तरिक्ष यात्री किसी ब्लेक होल (अन्तरिक्ष की काल कोठरी )या फिर न्युत्रोंन स्टार के नज़दीक पहुंचेगा ,उसकी घडी की सुइयां थम जाएँगी ,काल का प्रवाह रुक जाएगा ।
आइन्स्टाइन के गुरुत्व सम्बन्धी सापेक्षवाद की एक और धारणा थी :महाकाय अन्तरिक्षीय पिंड (महाकाय ग्रह,भीमकाय सितारे ,शक्ति शाली गुरुत्व के स्वामी इतर अन्तरिक्षीय पिंड )आकाश -काल की अन्विति कोअपने शक्ति शाली गुरुत्वीय क्षेत्र से मोड़ तोड़ देतें हैं ."बिग प्लेनेट्स ऑर स्टार्स विद लोटस ऑफ़ ग्रेविटी बेंड दी फेब्रिक ऑफ़ टाइम एंड स्पेस ,लाइक बालिंग बाल्स ऑन ए त्राम्पो -लाइन (उछाल पट ,एक धातु निर्मित ढांचा जिसमे कमानियों ,स्प्रिंग्स से जुडी मजबूत चादरों पर खिलाड़ी ऊपर नीचे उछलतें हैं .).जैसे जैसे हम इन अति गुर्तुवीय शक्ति बल केन्द्रों के नज़दीक -तर पहुंचतें हैं होते होते काल का प्रवाह थम जाता है .समय का दाय्लेसन हो जाता है .यही ग्रेवितेसनल टाइम डाय्लेसन है .बेशक हमारे जीवन सोपान पर इसका प्रभाव ना -काबिले गौर है लेकिन भू -भौतिकी एवं अन्य क्षेत्रों में इसका अपना महत्व है .आइये आम भाषा में जाने है क्याहै "गुरुत्वीय समय विस्तार "ग्रे -विटेश -नल टाइम दाय -लेसन ?
यदि आप एक गगन चुम्बी इमारत के सबसे ऊपर वाले माले (टॉप फ्लोर )पर रह रहें हैं तब आप ग्राउंड फ्लोर(भवन की भू -तल स्थित मंजिल ,निचले माले ) पर रहने वालों के बरक्स जल्दी बुढा -जायेंगें ,यू में एज फास्टर .आइन्स्टाइन का सापेक्षवाद इसका हामी है .नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्टेन-दर्ड्स एंड टेक्नोलोजी ,कोलाराडो के रिसर्चरों ने आइन्स्टाइन के इस विचार की मानवीय स्केल पर भी पुष्टि करलेने का दावा किया है ,जैसे जैसे हम पृथ्वी के केंद्र से दूर चलते जातें हैं ,समय का प्रवाह तेजतर होता चला जाता है .टाइम पासिज़ फास्टर ,इविन ऑन ए ह्यूमेन स्केल .यानी ऊपर के माले वाले लोग जल्दी बुढा- एंगें बरक्स नीचे माले वालों के ।
आइन्स्टाइन ने कहा था भू केंद्र से दूर जाने पर घड़ियाँ तेज़ चलने लगतीं हैं .राकेटों और वायुयानों पर इसकी आज़माइश की जा सकती है .विश्व की अब तक शुद्धतम घड़ियों से मानक और प्रोद्योगिकी संस्थान ,कोलोराडो के साइंस- दानों ने गणना करके उक्त तथ्य की पुष्टि की है .यदि किसी घडी को बस एक फूट ऊपर ही ले जाया जाए तब इसकीभी रफ्तार अल्पांश में ही सही बढ़ जायेगी .७९ वर्ष की आपकी संभावित जीवन अवधि में यकीन मानिए ९० बिलियंथ ऑफ़ ए सेकिंड का अंतरआजायेगा .(यानी एक सेकिंड को अगर ९० अरब भागों में विभक्त कर दिया जाए तो उसमे एक भाग का अंतर ).१० फीट ऊपर घडी को लेजाने पर ९०० बिलियंथ ऑफ़ ए सेकिंड तथा और यदि आपको अपना सारा जीवन ही मान लीजिये १०२ मंजिला इमारत (एम्पायर स्टेट बिल्डिंग ,१२५० फीट )पार बिताना पड़े तब आप की जीवन अवधि में १०४ मिल्यंथ ऑफ़ ए सेकिंड का अंतर तो आ ही जाएगा ।
गणनाओं के लिए रिसर्चरों ने "क्वांटम लोजिक "एटोमिक क्लोक्स का स्तेमाल किया .इन घड़ियों के रख रखाव समय की शुद्धता में ३.७ अरब वर्षों में ले देकर मात्र १ सेकिंड का अंतर (अशुद्धि के रूप में )दर्ज़ होगा .बेशक व्यावहारिक धरातल पर इसका कोई विशेष मतलब नहीं है लेकिन भू -भौतिकी और इतर क्षेत्रों में इसका मतलब है .यही बस गुरुत्वीय समय विस्तार या टाइम दाय -लेषण है .

आपका शौक जब दूसरो की मौत बन जाता है

टाकिंग टू डेथ :सेल्स बेड फॉर रोड (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २५,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
अमरीकी शोधकर्ताओं के अनुसार गाडी चलाते हुए सेल फोन पर बतियाते या फिर टेक्स्तिंग करते हुए नौज़वानों ने २००१ -२००७ के दरमियान १६ ,००० लोगों को मौत के घाट उतारा .वजह बना ड्राइविंग से ध्यान हठना ।
मोबाइल टेलीफोन दिस्ट्रेक्तशन फोन करते बतियाते कितनो की जान ले बैठा इसका वैज्ञानिक जायजा पहली मर्तबा लेने पर पता चला इनमे अधिकाँश तीस साल से नीचेके युवा थे जिनकी तादाद लगातार बेतहाशा बढ़ रही है .
यूनिवर्सिटी ऑफ़ नोर्थ टेक्सास हेल्थ साइंस सेंटर के फेरनान्दो विल्सन तथा जिम स्तिम्प्सों ने अमरीकन जर्नल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ में इस अध्ययन के नतीजे प्रकाशित करते हुए बतलाया है हाल में जिस तेज़ी से टेक्स्टिंग का वोल्यूम बढा है वैसे ही वैसे इस प्रकार की बिन बुलाई मौतों में भी इजाफा हुआ है .
आपने हरेक राज्य से सेल फोन जन्य मौतों का आंकडा जुटाया है .२०१-२००२ के बाद से टेक्स्टिंग वोल्यूम कई सौ %बढा है .जहां २००२ में हर माह सिर्फ १० लाख टेक्स्ट मेसेज भेजे जाते थे वहीँ यह तादाद २००८ में बढ़कर ११ करोड़ प्रति माह तक पहुँच चुकी थी .और यह सब रोड -फेटल -ईटीज़ इन्हीं टेक्स्ट मेसेजिंग से ध्यान भंग होने का नतीजा थीं .२००१ से अध्ययन संपन्न होने तक (२००७ ) १६,००० लोग इन्हीं बेहूदा वजहों से मौत के मुह में चले .गयेथे . करे कोई भरे कोई .

खासा ख़तरा है जवान दिलों को

यंग हार्ट्स इन पेरिल .इंडियंस इंदी ३०-४० एज ग्रुप हेव हाई कोलेस्ट्रोल लेविल :स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २५ ,२०१० ,पृष्ठ १४ ,टाइम्स नेशन )।
बहु -राष्ट्रीय निगमों में कार्य- रत १००० मुलाज़िमों पर संपन्न एक अध्ययन से खुलासा हुआ है ,इनमे से एक चौथाई के परिवारों में हृद रोगों का पूर्व वृत्तांत ,फेमिली हिस्ट्री रही है ।
२५ फीसद का वजन आदर्श कद काठी से ज्यादा है ,ओवर वेट हैं ये लोग ।
व्यायाम से भी दूर रहतें हैं ।
चिकत्सकों के अनुसार एक तरफ स्ट्रेस (तनाव और दवाब कार्य स्थल जीवन स्थितियों का )और दूसरी तरफ बैठे बैठे काम करने की लाचारी या आदत हृद रोगों के बढ़ते दायरे की एहम वजहें हैं ।
यही वजह है , आज केवल उम्र दराज़ ,एल -डार्लि लोग ही नहीं अधिकाधिक ३०-४० साला लोग हृद रोगों की जद में आगये हैं ,रोग निदान से इसकी पुष्टि भी हुई है ।
.मेट्रो -पोलिस हेल्थ के -यर द्वारा विभिन्न शहरों के नागरिकों पर संपन्न एक सर्वेक्षण में जिसमे ३५,५०० लोगों की पड़ताल की गई पता चला ३० साल से ऊपर के लोगों के खून में घुली हुई चर्बी (कोलेस्ट्रोल )की मात्रा ज्यादा है ।
३०-४० साला अधिकाधिक लोगों में हालाकि हृद रोगों का बा -कायदा निदान भी हो चुका है ,फिरभी अधिकाँश लोग कार्डिएक चेक अप के लिए पहल नहीं करते हैं और ना ही यह मौजूद रिस्क्स फेक्टर्स के प्रति खबरदार हैं ना इनसे वाकिफ ।
जी ई ,हीरो -होंडा ,नेस्ले ,इफ्को ,अमरीकन एक्सप्रेस जैसी कंपनियों के तकरीबन १,००० लोगों पर संपन्न एक और सर्वे में मेक्स हेल्थ के -यर ने पता लगाया ,६३ फीसद लोग सोचतें हैं उनके हृद रोगों की जद में आने का कोई संभावित जोखिम नहीं हैं जबकि इनमे से एक चौथाई के परिवारों में हृद रोग चला आया है .
हालाकि सर्वे में २५ फीसद लोग ओवर वेट निकले लेकिन ये लोग फिर भी व्यायाम नहीं करतें हैं ,संतुलित खुराक भी नहीं ले रहें हैं ।
ज्यादातर धूम्रपान के खतरनाक प्रभावों से वाकिफ ही नहीं हैं (ये नहीं जानतें सब ऐबों का बाप है धूम्रपान जैसे डायबिटीज़ सब रोगों की माँ है ।).
तकरीबन ११ फीसद लोग ब्लड प्रेशर और ब्लड सुगर की जांच ही नहीं करवातें हैं ।
चिकित्सकों का साफ़ लफ्जों में कहना है दो टूक :बैठे बैठे काम करने की आदत ,कुल मिलाकर सिडेन -टरी लाइफ स्टाइल ,और दैनिकी में पसरी स्ट्रेस हृद रोगों के लिए कुसूरवार है .सबसे बड़ी कीमत जवान लोगों के दिल को ही चुकानी पड़ रही है घर- बाहर, कामकाज की जगह पर मौजूद स्ट्रेस की .

पंख खोलकर फड़ -फड़ा कर उड़ता है यह हवाई -जहाज

आल दी राईट स्टफ .कनाडियन रिसर्चर्स हेव मेड दी फस्ट ह्यूमेन पावर्ड ओरनी -थोप -टर(एन एयर क्राफ्ट देट फ्लाईज़ बाई फ्लेपिंग इट्स विंग्स )केपेबिल ऑफ़ फ्लाईंग कंटी -न्युँसली ,ए फीट देट लियो -नार्डो दा विन्ची ओनली ड्रीमड ऑफ़ ही स्केच्द दी फस्ट ह्यूमेन -पावर्ड ओरनी -थोप -टर इन १४८५ (मुंबई मिरर ,साइंस -टेक ,सितम्बर २४ ,२०१० ,पृष्ठ २८ )।
आदमी की दो टांगें आवागमन का सबसे बेहतरीन और कायम रह सकने लायक ज़रिया हैं चाहे वह मेन- पावर साइकिल चलाने में खर्च हो या हवाई -जहाज को पेडलिंग के ज़रिये उड़ाने में खर्च हो .सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन कनाडियन रिसर्चरों ने यह कर दिखाया है .एक ऐसा जहाज हवाई बना लिया है जो हवा में पंख खोल फड़ फड़ा कर उड़ता है और अपना ईंधन (यांत्रिक शक्ति )आदमी की टांगों से पेडलिंग करने से पैदा ऊर्जा से जुटाता है ।
टोरोंटो -विश्वविद्यालय ने यह कर दिखाया है .विमान बनाने और उड़ाने की विद्या वैमानिकी को इतिहास के एक नए मोड़ पर ला खड़ा कर दिया है .एक सपने को साकार कर दिया है सपना था आदमी पक्षियों सा पंख लगाकर उड़ जाए .गीत है :पंख होते तो उड़ आती रे रसिया ओ बालमा ,तोहे दिल का दाग दिखलाती रे ।
एक ओरनी -थोप -टर खड़ा किया गया है .यूनानी भाषा का एक शब्द है :ओर्निथोज़ जिसका अभिप्राय है पक्षी चिड़िया तथा "पटरों" का अर्थ होता है ग्रीस देश की भाषा में विंग (पंख ,विमान का पंख या डैना).जी हाँ यह विमान उड़ते वक्त अपने डैने फड़ -फड़ा- ता है।

इस "स्नो -बर्ड "ने ओंटारियो(कनाडा ) के ग्रेट लेक्स ग्लाइडिंग क्लब में १९.३ सेकिंड्स तक उड़ान के दौरान अपनी ऊंचाई तथा एयर स्पीड को बनाए रखा .२५.६ किलोमीटर्स प्रति घंटा की रफ्तार से उड़कर कुल १४५ मीटर्स की दूरी तय की मात्र १९.३ सेकिंड्स में .टोरोंटो के इंस्टिट्यूट फॉर एयरो -स्पेस स्टडीज़ के इंजीनीयर टोद्द रेइचेर्ट के नेत्रित्व में उनके शरीर से ही ताकत (यांत्रिक शक्ति )जुटा कर उड़ान भरी .ज़ाहिर है पावर और पायलटिंग दोनों रेइचेर्ट की थी .लिओ -नार्डो दा विन्ची ने १४८५ में पंख लगा कर उड़ने की कल्पना प्रस्तुत की थी .एक कलाकार की कल्पना को एक दूसरे कलाकार अभियानकी-विद ने परवाज़ दी है आज ।
स्नो -बर्ड का कुल भार है ४२.६ किलोग्रेम्स (९४पौन्द्स )डैनो का विस्तार है ३२मीतर्स(१०५फ़ीत ).बेशक बोईंग ७०७ का विंग स्पेन भी इतना ही है लेकिन स्नो -बर्ड का भारउसमे ऑन बोर्ड जितने भी पिलोज़ हैं उनसे भी कम है. लाईट वेट और सक्षम वैमानिकी का यह अप्रतिम करिश्मा है .मानवीय शरीर की कूवत (क्षमता ) और प्रेरणा दोनों की संभावना को मूर्त रूप दिया है "स्नो -बर्ड "ने .यक एक प्रेरणा है जो कहती है हर कोई अपनी रचनात्मकता को पंख लगा सकता है .हिम्मते मरदां मदद दे खुदा .

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

गुरिल्ला के सौजन्य से हमतक पहुंचा है मलेरिया परजीवी ?

साइंसदानों का कहना मलेरिया की सबसे खतरनाक किस्म हम तक एक अफ़्रीकी बन्दर जो काले या भूरे बालों से ढका रहता है (गुरिल्ला /गोरिला /वनमानुष )से पहुंची है .मलेरिया परजीवी की पाँचों स्ट्रेंस में से सबसे खतरनाक और मारक स्ट्रेन (किस्म या प्रजाति ) परजीवी प्लाजमोडियम फाल्सीपेरम है जो हर साल कई करोड़ लोगों को रोग संक्रमित कर देता है इनमे से तकरीबन दस लाख मामले घातक साबित होतें हैं ।
अनाफलीज़ मादा मच्छर के हमारे शरीर का रक्त पान(ब्लड मील ) करने के बाद यह परजीवी हमारे पास पहुंचता है .अब तक साइंसदान यही मानते समझते आयें हैं यह परजीवी हम तक चिम -पांजी(एक बिना पूंछ का अफ्रीका में पाए जाने वाला बन्दर ) की मार्फ़त ही पहुंचा है ।
चिम्प -पैंजी अपने किस्म का अलग मलेरिया परजीवी "प्लाजमोडियम रेइचेनोविस "का वाहक है .पी -फाल्सीपेरम को अबतक इसी की एक स्ट्रेन समझा जाता रहा है ।
इस परिकल्पना का पोषण इस अन्वेषण से भी हुआ की एड्स का वायरस "एच आई वी -एड्स "भी हम तक इसी चिम्प -पैंजी की मार्फ़तजहां तक संभव है पहुंचा है ।
अनुमान यह भी था अफ़्रीकी जंगली जानवरों का गोश्त खाने से ही यह वायरसऔर मलेरिया भी आदमी तक आ पहुंचा .पहला शिकार इसका एक ऐसा ही आदमी हुआ जो या तो इन जानवरों का गोश्त संशाधित करता था या खाता था ।
लेकिन मलेरिया के उद्गम को ओरिजिन को लेकर ब्रितानी विज्ञान साप्ताहिक पत्रिका नेचर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़ हमारे एक और ग्रेट एप कजिन गोरिल्ला से हम तक पहुंचाहै यह परजीवी . .धीरे धीरे इसका अनुकूलन हमसे हो गया .इसने हमें ही गले लगा लिया ।
अपनी परिकल्पना के पोषण के लिए साइंसदान बेअत्रिस हाह्न (अलबामा विश्वविद्यालय )ने तकरीबन ३००० साम्पिल्स वाइल्ड लिविंग ग्रेट एप्स -चिम्प्स ,गुरिल्ला तथा बोंबोस के मल ,द्रोप्पिंग्स , के केन्द्रीय अफ्रीका के मैदानों से जुटाए . इनमे हर संभव प्लाजमोडियम रोगकारक (पैथोजन ) के डी एन ए क्रम(सिक्वेंस ) का पता लगाया .
गौर तलब है :"ऑन दी प्लाजमोडियम फेमिली ट्री ,ए "नियरली आई -देन्ति -कल "मेच फॉर पी .फाल्सीपेरम वाज़ फाउंड इन फीसीज़ (विष्ठा ,मल ,एक्स्क्रीता ,द्रोपिंग्स ) इन वेस्ट -रन गोरिल्लाज़ रादर देन इन चिम्प्स .,दी रिसर्चर्स फाउंड ।
एकल क्रोस स्पीशीज इवेंट साइंसदानों के मुताबिक़ इस ट्रांस -मिशन (संचार या अंतरण की इन जानवरों से हम तक ) की संभवतय रही हो .लेकिन ऐसा कब हुआ यह अभी अनुमेय ही है .अनुमेय ही अभी यह भी बना हुआ है ,क्या गुरिल्ला आज भी बारहा ,आवर्ती तौर पर मनुष्यों को होने वाले रोग संक्रमण की वजह बना हुआ है .भण्डार घर है .रिज़र्वायर है प्लाजमोडियम फाल्सीपेरम का ?

नोज़ ड्रोप्स समाधान प्रस्तुत करेंगी दिमागी कैंसर का भी

नोज़ ड्रोप्स देट कुड ट्रीट ब्रेन कैंसर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडियापब्लिकेशन ,मुंबईमिरर ,सितम्बर २४ ,२०१० ,पृष्ठ२८ .,साइंस -टेक )।
साइंसदानों ने एक ऐसी नोज़ ड्रोप्स तैयार कर आज़माइश कर लेने की बात कही है जो दिमागी कैंसर के इलाज़ मेभी कारगर सिद्ध होंगी ।
मिथो -ट्रेक्सेट की यह नै और सुधरी हुई किस्म कैंसर के खिलाफ भी प्रभावी रहने का वायदा प्रस्तुत करती है .जहां परम्परागतकैंसर रोधी दवाएं ब्लड ब्रेन ब्रेरीयर की वजह से दिमाग तक मुश्किल से ही पहुँच पाती हैं वहीँ नेज़ल ड्रोप्स इसका अतिक्रमण कर दिमाग तक पहुँच जाने में सक्षम प्रतीत हुईं हैं .हम जानतें हैं दिमाग को कोशाओं की परतों का बना एक कवच घेरे रहता है यही ब्लड ब्रेन बेरियर है .,जो खून से दिमाग तक दवाओं के दाखिल होने में दिक्कत पेश करता है ।
तोमोटाका शिन्गाकी ने जब इन नेज़ल ड्रोप्स कोदिमागी कैंसर से ग्रस्त चूहों पर आजमाया ,पता चला ट्यूमर का वजन कम हो गया .वह भी थोड़ा बहुत नहीं एक तिहाई बाई वेट ।
यह रण -नीति जिसमे नोज़ -ब्रेन -अंतरण (नोज़ ब्रेन डायरेक्ट ट्रांसपोर्ट )को सीधे सीधे आजमाया जाएगा एक नै चिकित्सा प्रणाली (न्यू थियेअरा -पेटिक - सिस्टम )की बुनियाद बन सकती है .केवल ब्रेन -ट्यूमर ही नहीं सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम्स दिस -ऑर्डर्स के लिए भी .
दो माह में एक बार प्रकाशित जर्नल "मोली =क्युलर -फार्मा -सिस्ट्स "में इस अध्ययन की रिपोर्ट प्रक्स्षित हुई है ।
ब्लड ब्रेन बेरियर ?
दी मिकेनिज्म देट कंट्रोल्स दी पैसेज ऑफ़ मोली -क्युल्स फ्रॉम दी ब्लड इनटू दी सेरिब्रो -स्पाइनल फ्लुइड एंड दी टिस्यू स्पेसीज सराउंडिंग दी सेल्स ऑफ़ दी ब्रेन इस ब्लड ब्रेन बेरियर .दी इंडो -थेलीयल सेल्स लाइनिंग दी वाल्स ऑफ़ दी ब्रेन केपिलारीज़ आर मोर टाईट -ली जोइंड टुगेदर अट देयर एजिज़ देन डोज़ लाइनिंग केपिलारीज़ सप्लाइन्ग अदर पार्ट्स ऑफ़ दी बॉडी .दिस अलाओज़ दी पैसेज ऑफ़ सोल्युसंस एंड फैट सोल्युबिल कंपाउंड्स बट एकस्क्ल्युड्स पार्तिकिल्स एंड लार्ज मोली -क्युल्स .दी इम्पोर्टेंस ऑफ़ दी ब्लड ब्रेन बेरियर इज देट इट प्रो -टेक्ट्स दी ब्रेन फ्रॉम दी इफेक्ट ऑफ़ मैनी सब्स्टेंसिज़ हार्मफुल टू इट .दी दिस -एड्वाटेज़ इज देट मैनी यूजफुल ड्रग्स पास ओनली इन स्माल अमाउन्ट्स इनटू दी ब्रेन एंड मच लार्जर डोज़इज हेव टू बी गिविन देन नोर्मल .ब्रेन कैंसर इस रिले -टिवली इन -सेंसिटिव टू किमो -थिय्रेपी ,ड्रग्स लाइक डायजेपाम ,एल्कोहल एंड फैट सोल्युबिल जनरल एनस -थेतिक्स पास रेडिली एंड कुइक्ली टू दी ब्रेन सेल्स .

(गत पोस्ट से आगे )मालती -पिल स्केलेरोसिस ?

अलावा इसके उच्चारण भ्रस्ट हो जाना (डिस -आर्थ -रिया ),स्पास्टिक वीकनेस , रेट्रो -बलबर न्युराइतिस भी इसके लक्षणों में शामिल रह तें हैं .नर्व डेमेज की वजह केवल अनुमेय ही बनी रही है अलबत्ता किसी ऑटो -इम्यून प्रोसिस का हाथ रहा हो सकता है .(समाप्त )

(गत पोस्ट से आगे )मल्टी -पिल स्केलेरोसिस के इलाज़ के लिए गोली की मंज़ूरी

माई -लिन को जो मल्टी -पिल स्केलेरोसिस में निशाने पर आजाता है "धवल -मज्जा -आच्छद"भी कहा जाता है .
माई -लिन इज ए कोम्प्लेक्स मेटीरियल फोर्म्द ऑफ़ प्रोटीन एंड फोस्फो -लिपिड देट इज लैड डाउन एज ए शीथ सराउंडिंग दी एक्जोंस ऑफ़ सर्टेन न्युरोंस ,नॉन एज माई -ली -नेटिद नर्व फाइबर्स ।
माई -लि -ने -टिड नर्व्ज़ कंडक्ट इम्पल्ज़िज़ मोर रेपिडली देन नॉन -माई -ली -नेटिद नर्व्ज़ .
मल्टी- पिल स्केलेरोसिस :यह एक केन्द्रीय स्नायुविक तंत्र (सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम ) का लाइलाज ,क्रोनिक (दीर्घ- कालिक ) रोग है जो अपेक्षाकृत युवजनों और अधेड़ उम्र के लोगों को अपना निशाना बनाता है .इस रोग में हमारे दिमाग में तथा स्पाइनल कोर्ड में नर्व्ज़ के एक वसीय पदार्थ के खोल को छलनी करके नष्ट कर देता है .माई -लिन आवरण के नष्ट हो जाने से न्यूरोन -न्यूरोन संवाद भी छीजता चला जाता है .क्यिंकि नसों पर चढ़े आवरण के नष्ट होने से नसें भी तो असर ग्रस्त हो जातीं हैं .बीच बीच में रोग शमन के दौर भी आतें हैं लेकिन रोग बार बार लौट आता है .लेकिन एक खासा तादाद ऐसे लोगों की रहती है जिनमे यह दीर्घकाल दिनानुदिन बढ़ता ही चला जाता है.दिमाग के अलग अलग हिस्सों तथा रीढ़ रज्जू को यह रोग असर ग्रस्त करता है .ऐसे में लक्षण भी बिखरेबिखरे रहतें हैं .अंग संचालन में अस्थिरता ,ठवन (गैट) का बिगड़ जाना ,आँखों असामान्य संचालन ,एब्नोर्मल मूवमेंट (निस्टाग -मस एंड इंटर -न्यूक्लीयर ओप्थेल्मो -प्लीज़िया )आदि इसके अन४एक लक्षण हैं .अलावा इसके सम्भासन का गड़ -बड़ा -ना

मल्टी -पिल के लिए ऍफ़ डी ए ने पहली मर्तबा एक पिल को मंज़ूरी दी .

यू एस ,ऍफ़ डी ए एप्रूव्स फस्ट पिल फॉर मल्टी -पिल स्केलेरोसिस (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २४ ,२०१० ,पृष्ठ २३ )।
अमरीकी दवा एवं खाद्य संस्था "ऍफ़ डी ए "ने मुह से खाई जाने वाली एक गोली (एक ओरल पिल )को मल्टी -पिल स्केलेरोसिस के सबसे ज्यादा आम स्वरूप के इलाज़ के लिए अपनी मंज़ूरी दे दी है ."गिलेन्य "या फिर "फिन्गोलिमोड़"नै दवाओं की श्रेणी की पहली ऐसी दवा है जो कुछ सुनिश्चित ब्लड सेल्स (ख़ास रक्त कोशाओं )को दिमाग और स्पाइनल कोर्ड तक नहीं पहुँचने देगी .ऐसे में रोग की गंभीरता सहज ही कम हो जायेगी .और रोग बारहा लौट लौट कर भी नहीं आ घेरेगा ।
मल्टी -पल स्केलेरोसिस के इलाज़ में इसे एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है ,क्योंकि इस पेचीला न्यूरो -लोजिकल कंडीशन में बारहा सुइंयों की ज़रुरत पडती रही है .जो कई मर्तबा बर्दाश्त के बाहर दर्द के रूप मेझेलने पडतें ही हैं ।
दुनिया भर में कोई पच्चीस लाख लोग इस स्नायुविक रोग से असर ग्रस्त रहतें हैं .यह एक लाइलाज और जद जामाए रहने वाला एक पेचीला एकदम से अशक्त बनादेने वाला रोग है जो "मयेलिन "को निशाना बनाता है ।
मयेलिन :केन्द्रीय स्नायुविक तंत्र (सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम ) में मौजूद माई -लिन शरीर की अनेक नसों पर चढ़ा वसीयपदार्थों (फैटी सब्स्तेंसिज़ )का आवरण (खोल )होता है जिससे संदेशों की गति बढ़ जाती है .इसे धवल -मज्जा -आच्छद

लाज़वाब सर्जरी

वोमन कट इन हाल्फ टू ट्रीट बोन कैंसर .सर्जन्स सजेस्टिद दी ग्राउंड ब्रेकिंग प्रोसीज़र ,व्हिच इन्वोल्व्द रिमूविंग दी वोमंस ट्यूमर ,दी लोवर हाल्फ ऑफ़ हर स्पाइन ,हर लेफ्ट लेग एंड पार्ट ऑफ़ हर पेल्विस .इट वाज़ दी फस्ट टाइम दी सर्जरी हेड एवर बीन अटेम्प्तिद ऑन ए लिविंग ह्यूमेन बींग .(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २४ ,२०१० ,पृष्ठ २३ )।
कनाडा में रहने वाली वह युवती दो बच्चों की माँ है जिसका बोन कैंसर ठीक करने के लिए उसे दो टुकड़ों में काट कर अलग करना पड़ा था ,तब जाकर ट्यूमर की कटाई छंटाई हो सकी थी .तीन साल हो चुके हैं इस कामयाब लेकिन अद्भुत शल्य को जानिस ओल्ल्सों(३१ वर्षीय ) ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा है .
वह दूसरे बच्चे की माँ बनने वाली थी .तभी पता चला वह सर्कोमा से ग्रस्त है .सरकोमा अस्थियों का लाइलाज कैंसर होता है जिस पर रसायन चिकित्सा (केमो -थिरेपी )तथा रेडियो -थिरेपी कामयाब नहीं रहतीं हैं ,रफ्ता रफ्ता वह बेहद के कमर दर्द की शिकायत लेकर डॉक्टरों के पास पहुंची .पता चला उसे ना सिर्फ ट्यूमर है बल्कि यह आकार में भी बेहद बड़ा है .डॉक्टरों ने,टोरोंटो ,कनाडा के माहिरों ने पहले तो साफ़ हाथ खड़े कर दिए लेकिन बाद में मयो क्लिनिक ,रोचेस्टर तथा मिन्नेसोता के शल्य -चिकित्सकों के साथ सलाह मशविरा करके एक "ग्राउंड ब्रेकिंग प्रोसीज़र' के तहत ट्यूमर को काट फैंकने का फैसला ले लिया .लेकिन इसके लिए उसके स्पाइन (रीढ़ की हड्डी )का निचला आधा हिस्सा ,बायाँ पैर तथा पेल्विस(पीठ में निचे की और स्थित चौड़ी हड्डियों का समुच्चय जिससे टांगें जुडी होतीं हैं ,श्रोणी क्षेत्र ) को भी थोड़ा तराश कर अलग रखना पड़ा .
५२ दिन उसे मयो क्लिनिक में स्वास्थ्य लाभ के लिए रखा गया ,इस दरमियान कुल दवा दारु पर खर्च आया २०,००० डॉलर ।
शल्य दो चरणों में एक हफ्ते के अंतर से किया गया .पहले चरण में १२ माहिरो की सर्जन टोली को २० घंटा लगे .२० यूनिट खून की ज़रुरत पड़ी .दूसरे चरण का शल्य ८ घंटा चला .२४० स्टेपिल्स लगाने पड़े शरीर को फिर से समायोजित समेकित करने ,जोड़ने,असेम्बिल करने के लिए ।
लेग बोन को स्पाइन के साथ सम्बद्ध किया गया .इस एवज़ पिनों और पैचों (स्क्रूज ) का जमकर स्तेमाल किया गया .इस सारी शल्य क्रिया को नाम दिया गया "पोगो स्टिक "ओल्ल्सन अब सही सलामत हैं .

सृष्टि के जन्म के समय जैसा पदार्थ अल्पांश में पैदा करने के करीब

सर्न -कोलाई -डर ऑन वर्ज ऑफ़ रिवीलिंग हाव इट आल बिगेन (स्टार्ट -इड)/दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २४ ,२०१० ,पृष्ठ २३ )।
ऐसा प्रतीत होता है योरपीय न्यूक्लीयर रिसर्च सेंटर फेसिलिटी का "सर्न -कोलाई -डर "अल्पांश में ही सही ऐसा पदार्थ तैयार करलेने में कामयाब रहा है जैसा सृष्टि के आरंभिक चरण में मौजूद था .दस अरब डॉलर से तैयार की गई है यह "बिग -बैंग मशीन "महा -मशीन पार्टिकल कोलाई -डर "।
चंद हालिया प्रयोगों के नतीजों से साइंसदान बेहद की आस से भर गए जिसमे साधारण प्रोटानों का स्तेमाल किया गया इस "लार्ज हैड्रोंन कोलाई -डर में ।
एक नै किस्म की भौतिकी से जल्दी ही वाकिफ होने की उम्मीद की जा रही है क्योंकि अपेक्षाकृत प्रोटोन से भारी कणों की परस्पर टक्कर तकरीबन प्रकाश के वेग से जल्दी ही इस महा- मशीन में करवाई जायेगी .
नाभिकीय शोध के के इस योरपीय केंद्र में पहले ही रिसर्चर (सर्न ) तथा इसके दायरे के बाहर काम करने वाले अनेक साइंसदान ताज़े आंकड़ों से खासा उत्साहित हैं .उनके शब्दों में ऐसा प्रतीत होता है परस्पर टकराते कण वैसा ही अति -सघनऔर उत्तप्त पदार्थ (हॉट डेंस मैटर )बनाने में कामयाब हो रहें हैं जैसा उस महा -विस्फोट के सिर्फ माइक्रो -सेकिंड्स बाद पैदा हुआ होगा .यही कहीं वह कुंजी मौजूद है जिससे खबर होगी हमारी इस सृष्टि में ,इस कायनात में ठोस द्रव और गैसें कैसे अस्तित्व में आईं।
यू एस ब्रूकहवें नेशनल लेबोरेटरी में लार्ज स्ट्रक्चर्स के साथ पूर्व में किये गए प्रयोगों से वर्तमान प्रयोगों के नतीजों का एक सह -सम्बन्ध दिखलाई देता है .प्रोटोन की परस्पर ज़ोरदार टक्करों (प्रोटोन कोलिज़ंस में )भी कुछ ऐसे ही कण पैदा होते दिखतें हैं .जो पहले कभी भी अपने अस्तित्व की खबर नहीं दे सके थे .
राजू वेणुगोपालन बेशक इन आजमाइशी ट्रायल्स का हिस्सा नहीं रहे हैं लेकिन नतीजों से बेहद उल्लसित हैं .आप ब्रूकहवें के एक नाम- चीन साइंसदान हैं .

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

(गत पोस्ट से आगे ,)बरसात का खाना -पीना ?

बेशक बरसात के मौसम में वेक्टर बोर्न दिजीज़िज़ (मलेरिया ,डें -ग्यु ,चिकिनगुनिया आदि घात लगाए बैठे रहतें हैं .फफूंद जन्य रोगों का ख़तरा अलग से मंडराता रहता है .(भारत के उष्ण -कटी बंधी क्षेत्रों में बरसात के मौसम में ,अचार चटनी ,ब्रेड किसी में भी फंगी(फंगल इन्फेक्सन ) जड़ ज़माये बैठा हो सकता है .ज़रुरत है इन्हें सही जगह सही तापमान पर रखा जाए .डब्बे इम -रत्बान आदि के मुह पर सिरका (विनेगर लगा कर रखा जाये ताकि फफूंद ना लगे ).इन्हें एयर टाईट भी रखा जाए .
जल जीवन- अमृत सिर्फ हमारे लिए ही नहीं है तमाम तरह के रोगकारक पैथो-जंस के लिए भी है जो बेतहाशा अपनी कुनबा परस्ती करतें हैं बरसात लगते ही .और फफूंद की तो पौ बारह हो जाती है .तमाम तरह के नाशी जीवजंतु खुलकर खेलने लगतें हैं .ऐसे में जल जन्य रोगों का ख़तरा एक दम से बढ़ जाता है ,साथ ही स्वच्छ जल के सेवन की भीज़रुरत पहले से भी ज्यादा हो जाती है ,यहाँ तक की उबालना पड़ता है पानी को क्योंकि फिल्टर्स तो काम के हैं नहीं जो विषाणुओं का खात्मा कर सकें .हाल हीमें सुनीता नारायण(सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरनमेंट ) ने भारत में फिल्टर्स का जायज़ा लेते हुए यही चिंता ज़ाहिर की थी .आर ओ फार ओज सब ढकोसला ही ज्यादा हैं .अपना स्वच्छ पानी साथ रखिये बाहर निकलते वक्त .क्लोरिन की गोली और उबालने की प्रक्रिया ही भली .बच्चों के साथ स्कूल भेजते वक्त पानी रखना ना भूलें .स्कूल के ड्रिंकिंग वाटर टैंक्स का जायजा भी समय समय पर लीजिये कहीं डेड पेस्ट्स तो घर बनाए नहीं बैठें हैं ।
बाहर की चाट पकौड़ी से बचने की एक से ज्यादा वजहें हो सकतीं हैं स्वच्छ पानी का अभाव तो उनमे से बस एक ही है .बरसात के मौसम में हाई -जीन (स्वास्थ्य विज्ञान) की दृष्टि से चीज़ों का रख रखाव और भी ज़रूरी हो जाता है .यहाँ तो वेंडर्स ही रोग संक्रमण ग्रस्त रहतें हैं .वेक्टर बन जातें हैं बरसात में ।
इस दरमियान रोग प्रति -रोधी तंत्र को चुस्त दुरुस्त रखने के लिए विटामिन -बी और विटामिन -सी का सेवन भी ज़रूरी है .फल और मोटे अनाजों से दोनों की आपूर्ति हो जाती है .लेकिन रा -सलाड्स भी खतरनाक हो सकतीं हैं बरसात के मौसम में ।
अचार घी आदि के डिब्बों में चमच्च देर तक ना छोड़ें .जो कुछ रखें एयर -टाईट कंटेनर्स में ही रखें .ध्यान रहे फंगस ना लगने पाए ।
सदूषित दूध की लस्सी ,फ्रूट क्रीम ,इतर डैरी-उत्पाद भी साख वाली जगह से ही लें .खतरनाक हो सकतें हैं संदूषित डैरी -प्रोडक्ट्स ।
फंगल इन्फेक्शन (फफूंद से पैदा चमड़ी रोग संक्रमण से बचाव के लिए नीम का बना नुस्खा आजमाइए .पहले साफ़ पानी से असर ग्रस्त चमड़ी को साफ़ कीजिए .नीम का तेल भी स्तेमाल में ले सकतें हैं .फफूंद और जीवाणु -नाशी क्रीम्स भी .
मच्छरों से बचाव के लिए एरोमा -थिरेपी काम में लें .यूकेलिप्टिस और लेमन ग्रास से मच्छर भगाइए .महीन नेट वाली मच्छर दानी भी स्तेमाल करें ।
इस मौसम में जोड़ों के दर्द से बचने के लिए व्यायाम भी ज़रूरी है .घर से बाहर नहीं जा सकते ,योगासन कीजिये .जा सकतें हैं तो जिम जाइए .व्यायाम शाला में जाइए ।
भुट्टा हर हाल में भला ,ग्रिल्ल्ड या बोइल्ड .उबला हुआ काला और सफ़ेद चना चाट में स्तेमाल करें .मूंगफली भी भली .हॉट ड्रिंक्स में जिंजर -टी (अदरक -मसाला चाय सबको भातीहै .)वैसे हॉट ड्रिंक्स में जस्मीन और चमोमिले भी हैं .जस्मीन इस यूस्ड टू फ्लेवर टी .
कामो -मिले :इट इज ए प्लांट विद ए स्वीट स्मेल एंड स्माल वाईट यलो फ्लावर्स .इट्स ड्राइड लीव्स एंड फ्लावर्स आर यूस्ड टू मेक टी एंड मेडिसंस.कामो -मिले टी इज फेमस .अदरक युक्त सूप्स भी भले रहतें हैं बरसात के मौसम में .
सन्दर्भ -सामिग्री :माइंड बॉडी सोल (हिन्दुस्तान टाइम्स /शिखा शर्मा /रैन रैन गो अवे .)

बरसात का खाना पीना ?

बहुत ही घिसा पिटा विषय है लिखने के लिए फिर भी हमें लगा कुछ नया समझा समझा -जाया सकता है .हमारी एक माशूका हैं (भगवान् करे सब की हों ,विधुर हों चाहें बेच्युलर ),बेहद शौक है उन्हें मटराखाने का (पश्चिमी उतार प्रदेश मशहूर है" मटरा" के लिए .बतलादें मटरा उबले हुए विशेष चने की चाट है ,जो मंदी आंच पर राँग की तरह घुल जाती है .आपको बतलादें किस्सा चंडीगढ़ का है जहां गुरु समान हमारे एक मुह्बोले मामा ,एक मित्र भी हैं .हम लोग चंडीगढ़ के एक पार्क में मटर -गश्ती कर रहे थे ,पार्क के बाहर एक मटरा वाला था .बस मोतर्मा मचल गईं ,मटरा उन्हें खिलाना पड़ा .हमारे मामा ने हमें बतलाया ये गली कूचे के वेंडर्स इनके ना बर्तन भाँड़ें साफ होतें हैं ना नाखून .हमने कहा सर यह तो उबला हुआ है सेफ है .लेकिन हम जानतें हैं और अच्छी तरह से मानतें हैं हमारा तर्क गिर चुका था .सर की बात में वजन था .साफ़ पानी ही कहाँ मयस्सर है भारत के गरीब गुरबों को ,भाँड़ें ऐसे में कैसे साफ़ सफाई वाले होंगें ।
बेशक मलेरिया कफ कोल्ड और विषाणु जन्य संक्रमण ,इन्सेक्ट बाईट (वेक्टर जनित बेहिसाब ,चिकिनगुनिया ,डें -ग्यु

गहरी -मूर्च्छा (कोमा )में जा चुके लोग बात कर सकेंगें ,चलफिर भी

ई ई जी -लाइक डिवाइस कैन हेल्प कोमा विक्टिम्स वाक् ( वाल्क एंड टाल्क)एंड टाक (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई सितम्बर २२ ,२०१० )।

मृतप्राय :व्यक्ति को जगाया जा सकेगा ?
एक चोटी के ,नाम -चीन ब्रितानी न्यूरो -साइंसदान ने दावा किया है ,एक दिन गहरी -मूर्च्छा (गहन निद्रा या कोमा ,प्राय :गंभीर बीमारी या चोट से उत्पन्न लम्बी अवधि की अचेतन अवस्था )में जा चुके लोग बातचीत कर सकेंगें आसपास तक घूम भी सकेंगें ।
एड्रियन ओवेन (कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय )पहले ही फंक्शनल मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग की मदद से यह दर्शा चुकें हैं ,कुछ लोग(पीड़ित ) जो ऊपर से देखने में जागरूक नहीं लगते वह ना केवल यह जान समझ लेतें हैं ,दूसरे उनके बारे में या आपस में क्या बात कर रहें हैं ,उनमे से कुछेक का ज़वाब भी दे सकतें हैं ।
अब ऐसा ही करिश्मा उन्होंने एक आम सस्ती सी छोटी सी एनसी -फेलोग्रेफ़ी मशीन से कर दिखलानेका दावा कर दिया है जो दिमागी विद्युत् -सक्रियता मापती बतलाती है .ओवन को यकीन है आइन्दा दस सालोंमे ही यह युक्ति आम-ओ -ख़ास को मयस्सर हो जायेगी .ओवेन कहतें हैं बेशक मुझे खुद यकीन नहींs,चंदi था मेंa ही हममरीज़s ऐसे संवाद कर सकेंगे जो पर -सिस्तेंट वेजिटे -टिव अवस्था में चला आया है .यानी जिसके शरीर को मशीनों से चलाया तो जा रहा है ,लेकिन दिमागी गति -विधि नदारद है .
ओवेन ने अपनी इस प्रागुक्ति (भविष्य कथन )की उस समय ही नींव रख दी थी जब वह २००३ में एक ऐसे २९ साला जवान का अध्ययन कर रहे थे जिसका एक कार दुर्घटना में ब्रेन डेमेज हो चुका था .यह व्यक्ति दो साल कोमा में बने रहने के बाद परसिस्टेंट वेजितेतिव स्टेट में चला आया था .वह ऊपर से देखने में जागरूक लगता था ,कभी -कभार पलकें भी झपकाता था लेकिन अलावा इसके उसे बाहरी दुनिया की कोई भी सुध नहीं थी ।
ओवेन की टीम तथा लिएगे विश्वविद्यालय के स्टेवें लौरेय्स ने मिलकर पता लगाया ,उसकी ब्रेन -एक्टिविटी की टाप्पिंग करके उससे संवाद संभव था ।
एक ऐसे ई ई जी से जो देखने में एक तैराक की टोपी सा लगता है जिसमे अनेक इलेक्ट्रोड्स टंके रहतें हैं , दिमाग में न्युरोंस की फायरिंग ,दिमागी एक्टिविटी दर्ज़ की जाती है .इस ई ई जी मशीन का उठाऊ संस्करण (पोर्टेबिल वर्सन )२०,००० -३०,००० पोंड्स कीमत का आयेगा .

चोकलेट तथा हाई -ब्रीड कारों के प्रति ललक तलब की आनुवंशिक वजहें मौजूद रहतीं हैं .,

क्रेविंग फॉर चोकलेट्स ,हाई -ब्रीड कार्स लिंक्ड टू जींस (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २२ ,२०१० ,पृष्ठ २३ )।
क्या चोकलेट और हाई ब्रीड कारें देख कर आप के मुह में पानी आजाता है ,बेहद की बेकाबू तलब इन्हें खरीदने के प्रति आपमें पैदा होने लगती है ?
इस दुर्दमनीय लालसा ललक की वजह आपकी जीवन इकाइयां (जींस )भी हो सकतीं हैं ,खानदानी क्रेविंग रही हो सकती है आपकी वंशावली में इन चीज़ों के प्रति ।
ये निष्कर्ष उन अमरीकी रिसर्चरों की एक टीम ने निकालें हैं जिन्होनें उपभोक्ता पसंदगी पर अपने अध्ययन जुडवाओं(ट्विन्स ) पर किये हैं .इन चारित्रिक विशेषताओं (ट्रेट्स )की आनुवंशिक वजहें रिसर्चरों ने पता लगाईं हैं ।
चोकलेट्स ,हाई -ब्रीड कार्स ,विज्ञान गल्प फिल्मों और जज्ज संगीत के प्रति ख़ास किस्म का उन्माद ,सनक की हद तक हुड़क ,तलबदेखी गयी है ।
इतमर सिमोंसों,स्टेन -फोर्ड विश्विद्यालय , के नेत्रित्व में यह अध्ययन संपन्न हुआ है .उपभोक्ता पसंदगी का व्यापक जायजा लेने के बाद पता चला कई जिंसों (कन्जूमर आइटम्स की पसंदगी को खानदानी विरासत प्रभावित करती है कुछ जीवन इकाइयां इस तलब के पीछे रहतीं हैं .खरीद फरोख्त के माले में एक्स्त्रीम्स पर ना जाकर बीच का समझौता परक रास्ता निकालना भी ऐसी ही आदतों में आयेगा .ज़ूआ नहीं लाभ चाहिए इन्हें .ईजी और नॉन -रिवार्डिंग कामों में हाथ डालतें हैं ये लोग चुनौतियां स्वीकार कर जोखिम नहीं उठाते ये तमाम लोग .मौजूदा विकल्पों में से सर्वोत्तम का चयन करतें हैं ये लोग ।
अलबत्ता नेनो और बड़ी और आरामदायक कारों के मुकाबले आनुवंशिक वजहों के दायरे से बाहर हैं .केच -अप और टे -टूज़ के प्रति पसंदगी भी इसी विरासत के बाहर रह जातें हैं ।
आखिर बुद्धि मत्ता,विवेक शीलता के पीछेकुछ तो खानदानी वजहें भीरहतीं होंगी अध्ययन इस पर नए सिरे से रौशनी भी डाल सकता है .

ओजोन परत फिर से दुरुस्त हो जायेगी २०४८ तक

"ओजोन लेयर कैन ऋ -कूप बाई २०४८ "(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई सितम्बर २२ ,२०१० ,पृष्ठ २३ )।
संयुक्त राष्ट्र की एक विज्ञप्ति के अनुसार, ओजोन कवच का टूटना रुक गया है और ओजोन की परत २०४८ तक अपने नुक्सान की भरपाई कर लेगी ।
एक दौर था जब शीतलक पदार्थों के रूप में फ्रिज में ही १०० किस्म के एरो -सोल्स चलन में थे .गेजेट्स ऐसी एक नहीं अनेक थीं .इनके चलन के स्थगित रहने के साथ ही ओजोनमंडल की परतों का छीजना भी कमतर होता चला गया .यह सब एक अंतर -राष्ट्रीय सहकार से ही मुमकिन हुआ और इसी के साथ चमड़ी कैंसर के दसियों लाख मामले टल गये ।
अनुमान है ध्रुवीय क्षेत्र के बाहर की ओजोन परतें २०४८ तक १९८० से पहले का स्तर प्राप्त कर लेंगीं ।
हालाकि हर साल पतझर के मौसम में जो दक्षिणी गंगोत्री क्षेत्र (अन्टार्क्टिक )के ऊपर जो ओजोन सूराख पैदा हो जाता है उसकी भरपाई होते होते २०७३ तक ही हो पाएगी ।
गत चार सालों में प्रस्तुत रिपोर्ट एक व्यापक अपडेट की खबर देती है जिसमे ओजोन कवच की सलामती के लिए वियेना बैठक तथा मोंट्रियल संधि के तहत कौन कौन से रसायन चरण बद्ध तरीके से हठाये गयें हैं चलन से बाहर हुएँ हैं इसका खुलासा किया गया है .यही रसायन एक तरफ ओजोन कवच के छीजने दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन की भी नींव रख रहे थे .

बुधवार, 22 सितंबर 2010

टोक्सिक फूड्स का मिथ ?(ज़ारी )

(गत पोस्ट से आगे ......)
विधाता ने मनुष्य को दो टाँगे दी है ,तो बैठे रहने के लिए नहीं चलने के लिए दी हैं फिर चाहे वह साइकिल हो या मर्क .दोनों का ही आदर्श स्तेमाल ज़रूरी है .व्यायाम कोशाओं तक बेहतर रक्तापूर्ति और पुष्टिकर तत्व पहुंचाने का ज़रिया बनता है .टोक्सिंस की शरीर से निकासी में मददगार रहता है .यह एक प्रभावी तरीका है हमारे शरीर तंत्र को पुष्ट और उसे विषाक्त पदार्थों से मुक्त बनाए रखने का .जो लोग नियमित व्यायाम करतें हैं उनका पेट साफ़ रहता है .कोई विरेचक लेने की ज़रुरत पडती है ना एनीमाज़ लगाने की .व्यायाम कुदरती निकासी का ज़रिया है मल- मूत्र और अपशिष्ट पदार्थ ,वेस्ट मैटरगंदगी अवांछित तत्वों के लिए ।
पिल्स, पाऊ -डर्स ,स्टीम, सौना आदि से ज़बरिया दस्त करवाना शरीर से ज़रूरी विटामिन -डी को भी बाहर कर देता है ,इंटेस -टिनल फ्लोरा और फौना को भी .ऐसे में पाचन बाधित हो जाता है जिससे शरीर में विषाक्त पदार्थों की मात्रा घटने की जगह और बढने लगती है ।
गौर तलब है :नियमित व्यायाम शरीर की तीसरी किडनी त्वचा या चमड़ी को भी उत्तेजन प्रदान कर सक्रीय कर देता है .पसीना अपने साथ सारा विषाक्त पदार्थ बहा ले जाता है .इसीलिए तो लोग डी -टोक्स करने के लिए व्यायाम करतें हैं .मेहनत की कमाई खातें हैं (हराम की खाने वालों की बात हम नहीं करतें ,उनकी वो जाने ).
और अब आखिर में मन की गति की, मानसिक स्थिति की बात करतें हैं .वेट को लेकर कई लोग बे -तरह ओब्सेस्ड रहतें हैं ,कमतर वेस्ट लाइन वाले कपडे खरीद लेतें हैं फिर उनमे फिट होने की हाड तोड़ कोशिश भी करतें हैं .जब आप एक फिटनेस फैशन ट्रेंड के पीछे वगैर अपनी सीमाएं पहचाने चल पडतें हैं ,एक फैड- डाइट के दीवाने हो जातें हैं तब इसे फोलो करने से पहले ही आप अपना कबाड़ा कर लेतें हैं .डी -टोक्सिफिकेशन तभी कारगर रहता है जब दिमाग शरीर को जैसा भी वह है स्वीकृति प्रदान कर देता है .और एक जिम्मेदाराना एहसास के साथ उसे आवश्यक पोषक तत्व से पोषित पल्लवित भी करता है मौज मस्ती के साथ .शर्मो -हया या फिर किसी हीन भावना से ग्रस्त हो इसे आवश्यक तत्वों से महरूम रखना अक्लमंदी नहीं है .(समाप्त )

डि -टोक्स फूड्स का मिथ (ज़ारी )

योर फ़ोर स्टेप गाइड टू डि -टोक्सिफिकेशन(इन दी कन्क्ल्युडिंग पार्ट ऑफ़ आवर सीरीज ,रुजुता दिवेकर एक्स्प्लैंस दी रूट टू ए क्लीनर सिस्टम )।
(गत पोस्ट से आगे ....,ज़ारी.... )
नींद ,खाना ,मन की स्थिति ,व्यायाम चार बुनियादी बातें हैं एक ऐसी जीवन शैली से जुडी हुई जिस पर कायम रहकर ना सिर्फ हम अपने सिस्टम (शरीर तंत्र )की साफ़ सफाई कर सकतें हैं ,नुक्सान की भरपाई भी जो सिस्टम को तोक्सिफाई करने के क्रम में हम करते आयें हैं .
सिस्टम की दुरुस्ती का सबसे कारगर उपाय है नींद .चैन की नींद (चिंता चिता समान,याद रहे ,चिंता से भरी नींद भी कोई नींद है ).दिन भर में हुई नुक्सानात की भरपाई करती है एक रेस्ट्फुल स्लीप .साफ़ सफाई तो करती ही है शरीर तंत्र की ,एक पूरी नींद .सबसे ज़रूरी काम नींद का हारमोन संतुलन को कायम करना रहता है ताकि अगले दिन के लिए हमारा सिस्टम पूरी तरह कमर कसके तैयार रहे .रोग -प्रति -रोधी तंत्र की चुस्ती - दुरुस्ती के लिए भी ज़रूरी है आराम से ,बे -फिकरी के संग सोना ,उठना .एपेटाईट को भी खबरदार रखती है अच्छी नींद ,ताकि अगली प्रभात हम खाने पर टूट ना पड़े ,बिंज ईटिंग से परहेजी रखें ।
हमारा खाना :हर दो घंटा बाद खाना उतना मुश्किल नहीं है जितना आप समझते आयें हैं .ओवर -ईटिंग से बचने का कारगर उपाय है किस्तों में खाना -पीना .सोकर उठकर तैयार होने के १५ मिनिट के अन्दर फल और मेवों का घर में तैयार साफ़ सुथरे नाश्ते का लेना हमें पर्याप्त पोषक तत्व मुहैया करवा देता है .ऐसे में हम चाय कोफी ,सोशल ड्रिंकिंग से सहज ही बचे रहतें हैं .वेळ नरिश -ड सिस्टम अंड- बंड कुछ मांगनेखाने से परहेज़ रखने लगता है .भूख के स्वास्थ्य कर संकेतों को जान समझकर हम सेहत को चौपट करने वाली फास्टिंग और फीसटिंग दुश्चक्र से भी बचे रहतें हैं .रफ्ता रफ्ता ही बढतें हैं हम मोटापे की ओर .यकीन मानिए पांच साल में दस किलो वजन बढाने के सिंड्रोम से भी बचे रह सकतें हैं .(ज़ारी ....)

आगामी तीन सालों में उपग्रह संचार को ग्लोबी स्तर पर नुक्सान पहुंचा सकतीं हैं सौर ज्वालायें ?

सोलर फ्लेअर कुड पुटेंशियाली पेरेलाईज़ अर्थ इन थ्री ईयर्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया पब्लिकेशन ,मुंबई मिरर ,सितम्बर २२ ,२०१० ,साइंस -टेक ,पृष्ठ २५ )।
क्या हैं सोलर फ्लेअर्स ?
ए ब्रीफ स -डेन इरप्शन ऑफ़ हाई -एनर्जी हाइड्रोजन गैस (चार्ज्ड पार्टी- किल्स एंड आयंस ) फ्रॉम दी सर्फेस ऑफ़ दी सन ,असोशियेतिद विद सन स्पोट्स आर काल्ड सोलर फ्लेअर्स ।
सूरज के काले धब्बे (सन स्पोट्स ):सूरज के अपेक्षाकृत कम गरम हिस्से सन स्पोट्स कहलातें हैं .इनकी तादाद एक ११.२ साला चक्र में आवधिक तौर पर बढ़ कर अधिकतम हो जाती है .इनके गिर्द अति -शक्ति शाली चुम्ब कीय क्षेत्र मौजूद रहता है .बस एक डार्क एरिया सा प्रतीत होने लगता है इस दरमियान सूरज की सतह पर .हज़ारों हज़ार मील लम्बे हो सकतें हैं यहसौर धब्बे ।
सौर ज्वालायें भी सौर सक्रियता के महत्तम (सोलर मेक्सिमा )का एक सहज प्रति -फल हैं ।

संदर्भित रिपोर्ट को लेतें हैं :अमरीकी अन्तरिक्ष एजेंसी "नासा "के साइंसदानों ने अनुमान लगाया है २०१२ -२०१३ तक सौर ज्वालायें पृथ्वी पर उपग्रह संचार में बड़े पैमाने पर खलबली पैदा कर ब्लेक आउट करवा सकती हैं (रेडियो -ब्लेक आउट )।
पूर्व के आकलन में साइंसदानों ने यह भी बतलाया था ,२०१३ में सौर चुम्बकीय ऊर्जा का शीर्ष अपने साथ बड़ी तादाद में सौर ज्वालाओं की बमबारी करवा सकता है पृथ्वी पर .ऐसे में विकिरण का स्तर बे काबू हो पृथ्वी पर चुम्बकीय तूफ़ान की वजह सहज ही बन सकता है .रेडियो -संचार को इससे भारी नुक्सान पहुँच सकता है .इंटरनेट तो ठप्प होगा सो होगा चुम्बकीय तूफ़ान अधुनातन इलेक्त्रोनी तंत्रों को ,इलेक्ट्रोनिक दिवाइसिज़ ,इलेक्त्रिसिती ग्रिड्स को चौपट कर सकता है .बेशक अभी अंतिम अन्वेषण ज़ारी है ।
इसी पर विचार गोष्ठी के लिए अमरीकी प्रति -रक्षा सचिव लिँ फॉक्स ने लन्दन में एक आपात कालीन बैठक बुलाई थी .आपने १८५९ में हुई ऐसी ही तबाही ऐसे ही चुम्बकीय विश्फोटोंकी याद दिलाई .ऐसा एक्स्प्लोज़न सौ सालों में बेशक एक मर्तबा ही होता है लेकिन सोलर फ्लेअर्स (सौर ज्वालाओं से )से मेसिव पावर सर्जेज़ आ सकतें हैं (ए स -डेन इनक्रीज इन दी फ्लोऑफ़ इलेक्ट्रिकल पावर कैन अकर ).सोलर फ्लेअर अपने साथएक इंटेंस सोलर प्रोमिनेस भी चंद मिनिटों तक ला सकती है .तबाही तो इस आकस्मिक चुम्बकीय तूफ़ान से होनी ही है .आल सिस्टम कैन कम टू ए स्टेंड स्टिल।
हम कितने ही सशक्त क्यों ना हो जाएँ हमारी प्रति -रक्षा बस उतनी ही मजबूत है जितनी की इसकी सबसे कमज़ोर कड़ी अरक्षित है .फॉक्स ने इस बैठक में यही कहा है .
एक ११ साला चक्र के तहत सौर सक्रियता मेक्सिमा -मिनीमा से गुज़रती है यानी शीर्ष को छूकर न्यूनतम पर आजाती है .२०१२ में न्यूनतम सक्रियता ख़त्म हो रही है .फिर शुरू होगा चुम्बकीय उफान का दौर .इसकी क्षति पूर्ती के लिएही एक विशाल सौर तूफ़ान पृथ्वी पर संचार नेट वर्क्स को निशाने पर ले सकता है .इस तूफ़ान में एक अनुमान के अनुसार १०० मिलियन हाई -ड्रोजन बमों के तुल्य विस्फोटक क्षमता हो सकती है ।
ऐसे ही तूफानों से पैदा तबाही की साक्षी हमारी पृथ्वी १८५९ तथा १९२१ में भी बन चुकी है .उस समय टेली -ग्राफ वायर्स का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ था .२०१२ इससे ज्यादाबड़ी तबाही का सबब बन सकता है .खुदा खैर करे .इंशा -अल्लाह सब ठीक होगा ?

कील मुंहांसे हठाने के लिए "इलेक्ट्रिक स्किन पैच"

मैश लाइक मेटीरियल किल्स बेक्टीरिया ,रिमूव्ज़ स्पोट्स विध -इन ३देज़ "इलेक्ट्रिक स्किन पैच टू क्युओर एकने (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितंबर २२ ,२०१० ,पृष्ठ )।
किशोर -किशोरियों के चेहरे को दागदार बनाने वाले कील मुहांसों को हठाने के लिए साइंसदानों ने एक हाई -टेक -इलेक्ट्रिक -पैच विकसित करलेने का दावा पेश किया है .देखने में यह पैच एक प्लास्टर सरीखा ही है लेकिन यह बेक्टीरिया को मारने के लिए एक इलेक्ट्रिक चार्ज (विद्युत् आवेश )का स्तेमाल करता है .यही जीवाणु एकने की नींव रखता करता है ।
एक इजराइली आधारित "टेक्नोलोजी कम्पनी, ओप्लों ,के साइंसदानों ने इसे तैयार किया है .एक छोटे से परिक्षण से पता चला है रात रात भर में ही यह पैच कील -मुहांसों को हठाकर चमड़ी की आब लौटा देता है .स्पोट लेस हो जाती है चमड़ी .दाग का नामोनिशान ही नहीं रह जाता है .तीन दिनों में आसपास के दाद धब्बे भी नदारद हो जातें हैं ।
समझा जाता है यह पैच एक जालीदार पदार्थ का बना है जिसे विशेष अणुओं से संसिक्त (भिगोया ,आप्लावित किया गया है )जब यह अणु चमड़ी की नमी के संपर्क में आतें हैं ,एक सूक्ष्म इलेक्ट्रिक फील्ड (विद्युत् क्षेत्र )पैदा करलेतेंहैं .इसमें जीवाणु ज़िंदा ही नहीं रह पाता है .
अलावा इसके डेड स्किन भी हठ जाती है .जीवाणु तो अपनी जान से जाता ही है .मैश जैसे पदार्थ में सलिक्यलिक(सैली -साइलिक) एसिड भी रहता है .यही मृत चमड़ी को हठाता है जो रोमकूपों को अवरुद्ध किये रहती है .तथा एजे- लिक एसिड पोर्स(चमड़ी के रन्ध्र ) के अन्दर जाकर बेक्टीरिया को मारता है .
अब एक बड़े परीक्षण,आज़माइश की तैयारी चल रही है .तकरीबन एक सौ लोग पैच का स्तेमाल रात भर या फिर ६ घंटा तक करेंगें .साल के अंत तक इस स्टडी के नतीजे भी आजायेंगें .दो सालों के अन्दर पैच भी उपलब्ध हो जाएगा .हालाकि प्लास्टर को एक ही स्पोट ठीक करने के हिसाब से तैयार किया गया है ,लेकिन साइंसदान एक बड़ा पैड तैयार करलेना चाहतें हैं जिसे काममे लेने वाले की सहूलियत के हिसाब से काटा जा सकेगा वांछित आकार में ।
परम्परा गत इलाज़ के तहत क्रीम्स का स्तेमाल कील मुहांसों पर किया जाता रहा है .बेन्ज़ोय्ल पर-ऑक्साइड एक जाना -सुना नाम है .यह मृत चमड़ी का बनना मुल्तवी रखती है ताकि रोमकूप खुले रहें .तथा चमड़ी पर मौजूद जीवाणुओं का सफाया करदेती है ।
दूसरी रण -नीति के तहत बेक्टीरिया के खात्मे के लिए एंटी -बाय -टिक्स का सहारा लिया जाता है .हफ़्तों चलता है यह इलाज़ और कुछेक मामलों में पार्श्व प्रभाव भी सामने आतें हैं .




भारतीय विज्ञानियों ने हाई -प्रोटीन देने वाली आलू की नस्ल तैयार की

इंडियन साइंटिस्ट ग्रो वर्ल्ड्स फस्ट हाई -प्रोटीन पोटेटो (दी टाइम्स ऑफ़ इंडियापब्लिकेशन ,मुंबईमिरर ,सितम्बर २२ ,२०१० ,पृष्ठ २५ /साइंस -टेक )।
भारतीय विज्ञानियों की एक टीम ने पहली मर्तबा आलू की एक ऐसी आनुवंशिक तौर पर संशोधित नस्ल तैयार की है जो प्रति ग्रेम ६०%ज्यादा प्रोटिनें मुहैया करवाएगी ,बरक्स आम किस्मों के .सेन्ट्रल पोटेटो रिसर्च इंस्टिट्यूट ,शिमला के सुब्र- चक्र -बोर्टी के नेत्रित्व में साइंसदानों की एक टीम ने यह स्पुड(पोटेटो ) तैयार किया हैजो प्रति एकड़ उपज भी अपेक्षा कृत ज्यादा मुहैया करवाएगा .न्यू साइंटिस्ट में इस अन्वेषण की पूरी रिपोर्ट प्रकाशित हुई है ।
अमरंथ (ग्रेन से (एक अनाज देने वाली फसल जो उष्ण कटिबंधी क्षेत्र में बहुत खाया जाता है .)से एक जीवन इकाई लेकर आलू की इस सुधरी हुई किस्म में रोप दिया था .इसका सम्बन्ध एक डी एन ए कोड से था .यही प्रोटीन के भण्डार देने वाला साबित हुआ .बस ट्यूबरमें प्रोटीन की मौज हो गई .
चूहों और खरगोशों को खिलाने पर इसके कोई टोक्सिक प्रभाव भी सामने नहीं आयें हैं.मजेदार बात यह है इस पादप में प्रकाश संश्लेषण की क्रियाभी ज्यादा होती है और यह प्रति एकड़ फसल १५ -२५ फीसद तक ज्यादा देता है .(१५-२५ %मोर पोटेटोज बाई वेट ).औरयह सब बस एक जीन (जीवन खंड ,जीवन इकाई का कमाल रहा है .).
मानवीय पोषण पर इस नै किस्म का बड़ा ही अनुकूल प्रभाव पड़ेगा .उद्योग और फोडर(चारे ) के लिए भी यह लाभ का सौदा सिद्ध होगी .स्वाद से भी भरपूर है आलू की यह किस्म .पकाने और संशोधित करने में भी अव्वल है .इंडियन रेग्युलेटर्स से इस प्रोटीन -बहुल आलू के आम स्तेमाल की मंज़ूरी मांगी गई है .बस थोड़ा सा इंतज़ार कीजिये .आलू आपके घर द्वारे होगा .

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

ड़ी -टोक्स फूड्स का मिथ (ज़ारी .)..

ड़ी -टोक्स करने से पहले अपने मन को जान लें ,मानसिक अवस्था से वाकिफ होलें .नींद कितनी लेतें हैं आप ,कसरत कितना करतें हैं ,क्या कुछ आपकी खुराक में बतौर खाद्य शामिल रहा आया है ?कहीं आपको लगता है आपका व्यवहार खुद के प्रति ,शरीर की zarooriyaat के प्रति gair जिम्मेदाराना रहा है ?तीज त्यौहार ,छुट्टी बेशाख्ता खाने में बिताने , मनाने के बाद, आप डी -टोक्स का सोच रहें हैं ?क्या अब कोई हीन भावना ,कोई शर्मो -हया आपका पीछा कर रही है ?क्या आप डी -टोक्स के बाद gt mahine kharidi apni nai jeens में fit hone का सोच रहें हैं ?और अपनी दुर्दशा करने के लिए तैयार हैं ?
सलाद डेज़र्ट ब्युफे के झांसे से बाहर निकलने के लिए इन सवालों के ज़वाब मुल्तवी रखना मुमकिन नहीं है .क्या अपने शरीर को साफ़ सफाई से रखना क्लीन रखना आपका फ़र्ज़ नहीं है ?इसी तरह सेघर गली का कचरा नगर निगम की वेस्ट बिन्स में डालिए गली में मत फैलाइये .नेताओं का भरोसा झांसे से भी आगे की चीज़ है ।
डी -टोक्स का अब एक ही मतलब रह गया है ,किसी भी वहम में मत रहना :फीस्टिंग एंड फास्टिंग या फिर स्टार्विंग (पहले भूखों रहनाफिर )ठूँसा- ठांस, बिंज ईटिंग्स ,खाने पे टूटना ।
सो नो देट

ड़ी -टोक्स फूड्स का मिथ ?

दे -यर इज मच मोर टू हेल्थ देन करेला ज्यूस (मुंबई मिरर सन्डे सितम्बर १९, २०१० ,पृष्ठ २८ )/रुजुता दिवेकर ,न्यूट्रीशन कंसल्टेंट ,कंट्रीज ए लिस्ट /ऑथर ऑफ़ दी पाप्युलर बुक "डोंट लूज़ योर माइंड ,लूज़ योर वेट "।
पहली किश्त :
अगर आप शरीर को डी -टोक्सिफाई करना चाहतें हैं तो पूरी गंभीरता से आपको यह भी सोचना पड़ेगा ,ऐसी नौबत क्यों आन पड़ी .आखिर अपने ही सिस्टम को आपने खुद ही टोक्सिफाई किया होगा .ऐसे क्या कम्पल्संस ओब्सेसंस रहे जो आज यह शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करना ज़रूरी लगा/और क्या आप सोचतें हैं जो कबाड़ा आपने शरीर का २/५/७ महीनों, सालों में जाकर किया उसकी सफाई २/५/७ दिनों में किसी क्रेश कोर्स से सचमुच हो जायेगी ?
जब आपके वार्ड में कोई नेता पधारता है तब महानगर परिषद् फ़टाफ़ट साफ़ सफाई की व्यवस्था को चाक चौबंद कर लेती है उसके बाद वही ढाक के तीन पांत .वही गंदगी के टापू महानगर की कौख पर उग आतें हैं ।
क्या आप सचमुच अपनी गली मोहल्ले को साफ़ रखना चाहतें हैं ?ज़ाहिर है आपको अपना रवैया बदलना पड़ेगा .अपने सिस्टम को डी -टोक्स करना कोई गुडिया गुड्डों का खेल नहीं है .जीवन शैली बदलनी होगी आपको अपनी .खानपान के प्रति नज़रिया भी .वगरना तो करेला और ऊपर से नीम चढ़ा वाली उक्ति ही चरितार्थ हो जायेगी ।
डी -टोक्स करने की प्रक्रिया में आप अपने शरीर के साथ वैसा ही खिलवाड़ कर बैठेंगें जैसा टोक्सिफाई करते समय करते आयें हैं बल्कि उससे भी बदतर .यकीन मानिए ।पुष्टिकर तत्वों की निगाह में ऐसा ही होगा .कुछ दिन फल फूल मेवे (नट्स ,अखरोट दूध में भिगोकर खाने से कुछ होने जाना नहीं है .)ना ही कुछ सब्जियों का रस पीने से कुछ होना जाना है .और उपवास से तो और भी बेड़ा गर्क होना है .गुदा से भी तरह तरह के नुश्खों को दाखिल करवाया जाता है .दवा की कोई एक खुराख या विष अल्पांश में ऐसा नहीं बना है जो जादुई ड्रिंक कहलाये .फिर भी लोग ऐसा करतें भी हैं मानतें भी हैं .दस्त लगने का अर्थ सिस्टम की साफ़ सफाईहोना लगा लिया जाता है .सब कुछ जानते हुए हम अपने को गुनी और सयंमी मान बैठतें हैं जबकि हम अन्दर से जानतें हैं ,हम चंद दिनों में ही अपने पुराने ढर्रे पर लौट आयेंगें ।
जान के अनजान बनना नादानी नहीं है तो और क्या है ?और मान लीजिये जो कुछ आप कर रहें हैं वह सचमुच फायदे की चीज़ है तो फिर ऐसा चंद दिनों के लिए ही क्यों करतें हैं ,हमेशा के लिए फल फूल ,सब्जियों के सत और बे -हिसाब पानी पर ही क्यों नहीं रहते आप ?
उत्तर सरल है ऐसा मुमकिन ही नहीं है टिक नहीं सकता ऐसा करते रहना .डी -टोक्स वही भला जिस पर आप कायम रह सकें ,आपके कामकाजी घंटों से जो मेल खाता हो ,आपकी बरसों से चली आई खुराख से जिसका कोई ताल्लुक रहा हो .आपका एक मन भी है पसंदगी ना -पसंदगी भी है ,आप एक ख़ास भौगोलिक ज़ोन में रहतें आये हैं ,धूप ,ताप, नमी सभी कुछ के तो आदी हो चले हैं आप .आपका एक एक्सर -साइज़स्टेटस भी रहा आया होगा ? फिर सबको एक ही लाठी से कैसे हांका जा सकता है ?डी -टोक्स वह किस काम का जिस पर आप कायम ही ना रह सकें ?
जीवन किसी पांच तारा होटल के अभिनव ब्युफे की मानिंद नहीं है ,आप सिर्फ सलाद और देज़र्ट्स पर ज़िंदा रहें ?ये शातिर लोग जानतें हैं और अच्छी तरह से मानतें हैं हम डी -टोक्स के चक्कर में सिर्फ सलाद और देज़र्ट्स खा रहें हैं ,मैनकोर्स से छिटक रहें हैं .ऊपर से तुर्रा यह इसके बाद हम पेस्ट्री भी उड़ा -एंगें कहते हुए अरे साहिब यह तो हमने अर्न की है ,कमाई है अपने आप को महरूम रखके ।
काम की बात यह है डी -टोक्स अपने को रखना एक दिन का खेल नहीं है .पहेल सिस्टम को होने वाली नुकसानी तो कम कीजिये ।
चार बुनियादी बातें आपको याद रखनी हैं :खाद्य (फ़ूड ),एक्टिविटी (आपकी दिन भर में सक्रियता ),नींद चौबीस घंटों में कितनी है ?आपका मन कैसा रहता है ?
इन चारों को दुरुस्त कीजिये फिर डी -टोक्स करने का सोचिये ।
(शेष अगली किश्त में .....ज़ारी )

डेंग -यु के खिलाफ वेक्सीन अंतिम चरण में

वेक्सीन फॉर डें -ग्यु जस्ट ए स्टेप अवे (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई सितम्बर २१ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
ऑस्ट्रेलियाई रिसर्चरों ने डेंग -यु वेक्सीन के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है उम्मीद की जा सकती है इस खतरनाक बुखार के अभि- शाप से जल्दी ही आम और ख़ास को छुटकारा मिलेगा ।इस पर गत सालों से काम ज़ारी है .अब केवल इसके ट्रायल्स का आखिरी चरण बाकी है उसके बाद इसे लाइसेंस मिल जाएगा आम स्तेमाल की छूट मिल जायेगी .डें -ग्यु -बुखार का वायरस तेज़ बुखार ,मिचली (वोमिटिंग )सिर दर्द ,हाड तोड़ जोड़ों के दर्द आदि की वजह बनता रहा है ।आँखों के पीछे का दर्द बेहद परेशान करता है .
इसे इंस्टिट्यूट फॉर चाइल्ड हेल्थ रिसर्च के पीटर रिचमंड के नेत्रित्व में दिशा मिली है .इसका एक टीका ही (सिंगिल वेक्सीन )चारों तरह की डें -ग्यु स्ट्रेन से हिफाज़त करेगा .
बच्चों और वयस्कों में इसका अध्ययन किया जा चुका है यानी फेज़ थ्री का काम हो चुका है अब सिर्फ नैदानिक परीक्षणों (क्लिनिकल ट्रायल्स )का आखिरी चरण बाकी है .बस शुरू होने को ही है यह अंतिम चरण भी उसी के बाद इस वेक्सीन का व्यावसायिक उत्पादन किया जाएगा ।
दुनिया की आधी आबादी ऐसे इलाकों में रहती हैं जहां डें -ग्यु की तलवार लटकती ही रहती है .बच्चों में खासतौर पर यह रोग गंभीरऔर घातक रूख ले लेता है ।
ऑस्ट्रेलिया में वे तमाम घुमंतू किस्म के लोग जो दक्षिण -पूर्व की ओर निकल जातें हैं डें -ग्यु की चपेट में आजातें हैं .खासकर बाली जाने वाले ट्रेवलर्स इसके निशाने पर आतें हैं .इस बरस गत बरसों से दोगुने मामले डें -ग्यु फीवर के उन ट्रेवलर्स में ही दर्ज़ हुएँ हैं जो बाली से लौटें हैं .इनमे से कई मामले गंभीर साबित हुएँ हैं ।
लिया ब्लों उत्तरी टाई -लैंड (थाईलैंड )से डें -ग्यु की सौगात लेकर लौटीं .उनकी अप्रेल यात्रा दुखद रही .पूरा हफ्ता रोअरिंग टेम्प्रेचर ओर आँखों के पीछे के तेज़ दर्द में गुजरा .आपको यकीन है वेक्सीन के अंतिम चरण के ट्रायल्स कामयाब रहेंगें .केवल ट्रेवलर्स को ही नहीं ट्रोपिक्स में (उष्ण -कटी बंधी क्षेत्र )में रहने वाले तमाम लोगों को इसके अभिशाप से मुक्ति मिलेगी .

पचास का मतलब मस्ती की उम्र

एज ऑफ़ फ़न:५० इज दी न्यू २५ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई सितम्बर२१ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
पचास के पेटे में आचुके लोग पच्चीस साला लोगों से ज्यादा मस्ती करतें हैं ,बने ठने मस्ताने रहतें हैं .खुश रहतें हैं .सप्ताह में ज्यादा बार रात घर से बाहर बितातें हैं ज्यादा लोगों से मिलतें हैं .लम्बी यात्रा पर जातें हैं घर से बहुत दूर निकलकर .एक ब्रितानी अध्ययन से यही सब पुष्ट हुआ है ।
अध्ययन के मुताबिक़ पचास साला लोग सप्ताह में कमसे कम दो बार नाईट आउट करतें हैं औसतन चार लोगों से मिलते जुलतें हैं .साल में कमसे कम तीन सप्ताह- अंत बाहर ही मौज मस्ती करतें हैं जबकि उनसे आधे से भी कम उम्र के लोग सप्ताह में लेदेकर एक ही शाम बाहर बिता पातें हैं .केवल तीन मित्रों हम उम्रों से मिल पातें हैं साल भर में दो ही ब्रेक ले पातें हैंवह भी छोटे छोटे .१८ -७५ साला ४००० लोगों पर किये गए एक पोल के यही नतीजे निकलें हैं .
पोल में शामिल उम्र दराज़ लोगों ने साफ़ कहा उनका एक ही मकसद है अधिक से अधिक मौज लेना .जबकि उम्र के तीसरे दशक में अटकेएक तिहाई लोग ही ऐसा कर कह पाए .ये लोग नौकरी से पैदा उलझनों को ही सुलझाने में तनाव जदा रहतें हैं ऐसे में जीवन के कुछ और पहलू सहज ही नज़रंदाज़ हो जातें हैं .बेन्दें हेल्थ केयर की यही फ़ाइन्दिन्ग्स सामने आईं हैं .पोल आपने ही प्रायोजित किया था .बींग फिफ्टी इज दी न्यू २५ .निफ्टी फिफ्टी इस मोर सोशियेबिल

सर्दी जुकाम का आम वायरस बच्चों को मुटिया रहा है ,ओबेसि बना रहा है ?

कोमन कोल्ड वायरस मेक्स किड्स फैट?(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई सितम्बर २१ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
अमरीकी रिसर्चरों के मुताबिक़ जो बच्चे कोमन कोल्ड के आम वायरस "एडिनो -वायरस ३६ "से ग्रस्त मिले जिनमे सर्दी जुकाम के लक्षण पाए गये ,आँखों में कुछेक कीइन्हीं बच्चों में से संक्रमण भी पाया गया उनका वजन भी औसतन बाकी उन बच्चों से जिनमे इस विषाणु से पैदा एंटी -बॉडीज नहीं मिले २२.६ किलोग्रेम वेट ज्यादा मिला ।
रिसर्चरों के मुताबिक़ इसका मतलब यह हुआ बालपन का वायरल इन्फेक्शन (वायरस से पैदा होने वाला संक्रमण ) उनकी ओबेसिटी (मुटियाने )की वजह भी बनता है ।
केलिफोर्निया विश्व -विद्यालय ,सन डिएगो कैम्पस के रिसर्चरों को पता चला ओबेसि बच्चों में इस एक ख़ास विषाणु स्ट्रेन एडिनो -वायरस से पैदा एंटी -बॉडीज सामान्य वजन वाले बच्चों से कहीं ज्यादा पाए जाने की संभावना देखी गई .पीडिया- ट्रिक्स के ऑन लाइन संस्करण में इस अध्ययन की रिपोर्ट प्रकाशित हुई है .
अध्ययन से एक बात और भी साफ़ हुई है शरीर के वजन का विनियमन (बॉडी वेट रेग्युलेसन )तथा मोटापे का पनपना (डिव -लप -मेंट ऑफ़ ओबेसिटी )बहुत ही उलझे हुए विषय हैं .मतलब सिर्फ यह नहीं है कुछ बच्चे ज़रुरत से ज्यादा खातें हैं तो कुछ कम .ऐसे भी बच्चे हैं जो गलत और अस्वास्थाय्कर भोजन गलत (ज्यादा मात्रा में खातें हैं )फिरभी ओबेसि नहीं हैं ।
कुछ और माहिर इस शोध के बारे में कहतें हैं इससे कहीं भी यह सिद्ध नहीं होता ,वायरस वेट गैन की वजह बन रहा है .ऐसा भी तो हो सकता है ओबेसि बच्चे अपेक्षाकृत ज्यादा इस विषाणु के असर में आजातें हैं ।
अलबत्ता पूर्व की रिसर्च (विद सेल्स इन पेट्री- डिश ) ऐसा सुझाव ज़रूर देती है ,यह वायरस हमारे शरीर में कुछ ऐसे बदलाव ला देता है जिनकी वजह से हमारा वजन भी बढना शुरू हो जाता है .पूर्व की रिसर्चों में यह भी बतलाया गया था ,यह वायरस फैट सेल्स प्री -कर्सर्स में दाखिल हो जाता है ,उन्हें रिवायर करता है और ज्यादा फैट सेल्स बनाने के लिए उकसाता है .या फिर वसा कोशिकाओं को ही इस तरह से संशोधित करदेता है ,वह ज्यादा वसा तैयार करने लगतीं हैं ।
एनीमल स्टडीज़ में पुष्ट हुआ है इन्हें एडिनो -वायरस-३६ से इन्फेक्ट करने पर यह मोटे होने लगतें हैं बेतरह इनका वजन बढ़ने लगता है .
अधययन में रिसर्चरों ने १२४ बच्चों (८-१८ साला उम्र )में एडिनो -वायरस -३६ से सम्बद्ध विशिष्ट एंटी -बॉडीज की पड़ताल की .ह्यूमेन ओबेसिटी से सम्बद्ध यह अकेला एडिनो -वायरस है .जो बच्चे एडिनो -वायरस पोजिटिव पाए गये उनका वजन भी औसतन २२.६ किलोग्रेम वेट ज्यादा रहा बरक्स उनके जो एडिनो -वायरस नि -गेटिव थे .सिर्फ मोटे बच्चों के समूह में भी जो एडिनो ३६इन्फेक्सन से ग्रस्त थे औसतन १५.८ किलोग्रेम वजन ज्यादा पाया गया बरक्स इसी समूह के उन बच्चों के जो इस संक्रमण से बचे हुए थे .